Manas Manthan : वनवास के 14 वर्ष बीतने के साथ ही अयोध्या में होने लगे शुभ शकुन, जानें माताओं, भरत जी सहित वहां के निवासियों के मन में हुई कैसी हलचल 

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Manas Manthan : 14 वर्षों के लिए वनवास पर जाने के बाद से ही श्री राम की माताएं और भरत, शत्रुघ्न सहित सभी अयोध्या वासी उनके आने की बाट जोह रहे थे.

Manas Manthan : 14 वर्षों के लिए वनवास पर जाने के बाद से ही श्री राम की माताएं और भरत, शत्रुघ्न सहित सभी अयोध्या वासी उनके आने की बाट जोह रहे थे, ऐसे में धीरे-धीरे कर समय बीतता गया और जब सिर्फ एक दिन ही रह गया तो सब व्याकुल हो गए. उनके मन शंकाओं से भर गए कि अभी तक उनके अपने राम क्यों नहीं आए. इसी बीच अचानक ही कई तरह से शुभ शकुन होने लगे तो सबके मन प्रसन्न हो उठे. पक्षी चहकने लगे, पेड़ फल और फूलों से लद गए हर व्यक्ति के चेहरे पर विशेष चमक दिखने लगी और सारा वातावरण रमणीक हो गया. सारे शकुन यही संदेश दे रहे थे कि उनके प्रभु अयोध्या लौट रहे हैं. 

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Manas Manthan 14 वर्षों के लिए वनवास पर जाने के बाद से ही श्री राम की माताएं और भरत शत्रुघ्न सहित सभी अयोध्या वासी उनके आने की बाट जोह रहे थे


भरत के मन में उठने लगे विचार 

कौशल्या जी सहित सभी माताओं के मन आनंदित हो रहे थे, मानों किसी ने कहा हो बस सीता जी और लक्ष्मण जी सहित श्री राम अयोध्या में प्रवेश कर चुके हैं. भरत की दाहिनी आंख और दाहिनी भुजा अचानक फड़कने लगे. इसे शुभ शकुन जान कर वह भी आनंदित हो विचार करने लगे कि प्राणों के आधार रूप की अवधि का सिर्फ एक दिन ही शेष बचा है. इसके साथ ही उनके मन में नकारात्मक विचार भी आने लगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उनकी अपनी कुटिलता को प्रभु ने पहचान कर उन्हें भुला ही दिया हो. इसके साथ ही वह लक्ष्मण को लेकर विचार करने लगे कि वह बहुत ही धन्य है, जो उसे उनके चरणों का प्रेम मिल रहा है. मुझे तो प्रभु ने कपटी और कुटिल जानकर ही अपने साथ नहीं लिया है. उन्हें लगा कि उनका यह विचार ठीक ही है क्योंकि यदि प्रभु ने भरत की करनी पर ध्यान दिया तो असंख्य युगों तक भी उन्हें इस दोष से छुटकारा नहीं मिल सकता है. फिर मन में विचार आया कि प्रभु कभी भी अपने सेवक के अवगुणों पर ध्यान नहीं देते हैं. वो तो दीनदयाल, कृपा निधान और अत्यंत ही कोमल स्वभाव के हैं.

लेख का मर्म

प्रभु श्री राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद लौटने के ठीक पहले अयोध्या के लोगों के मन की अंतर्दशा का वर्णन कर गोस्वामी तुलसीदास ने श्री राम चरित मानस के उत्तरकांड में यह संदेश देने का प्रयास किया है कि मन में संशय और विचारों का द्वंद स्वाभाविक है. यह एक सामान्य भाव है जो हर किसी में आता है जब भरत जी जैसे धीर गंभीर और प्रभु की भक्ति में लीन रहने वाले के मन में सकारात्मक और नकारात्मक विचारों का द्वंद पैदा हो सकता है. तो सामान्य व्यक्ति में ऐसा होना कोई गलत नहीं है. हां जो लोग हमेशा सकारात्मक कर रहते हैं, उन्हें सब कुछ अच्छा ही फल प्राप्त होता है.  

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