पृथ्वी लोक में असुरों का अत्याचार बढ़ा और मनुष्य तथा देवता सभी उनसे पीड़ित हो त्राहि त्राहि करने लगे, तो श्री हरि ने रघुवंश में अवध नरेश महाराजा दशरथ और महारानी कौशल्या के पुत्र के रूप में जन्म लिया. जन्म लेते ही जब उन्होंने मां को अपने विराट रूप के दर्शन दिए कुछ देर वह कौतुहल में डूबी रहीं किंतु जल्द ही सामान्य हो कर बोलीं, हे नारायण आप शिशु लीला करें, मैं ही नहीं पूरी अयोध्या बरसों से आपकी उसी लीला को देखने का इंतजार कर रही है. मां के वचनों को सुनकर वह छोटे शिशु बन गए.
कैलाश में ही शिव जी को मिली जानकारी
इधर अगस्त्य मुनि से राम कथा सुनने के बाद भगवान शिव सती जी के साथ कैलाश में जाकर रहने लगे और जैसे ही उन्हें अपने प्रभु के अयोध्या में जन्म लेने की जानकारी मिली, तो वे उनका दर्शन करने को व्याकुल हो गए. शंकर जी ने अपने मन के विचार को न तो सती जी को बताया और न ही उन्हें इस बात की जानकारी थी. धीरे-धीरे श्री राम बड़े होने लगे और गुरु विश्वमित्र के आग्रह तथा पिता के आदेश पर राजभवन को त्याग कर उनके साथ दंडकवन को राक्षसों के आतंक से मुक्त करने को अपने अनुज लक्ष्मण के साथ गए. शिव जी की व्याकुलता अपने प्रभु श्री राम के दर्शन करने को बढ़ती ही जा रही थी. गोस्वामी तुलसीदास राम चरित मानस में लिखते हैं कि शिव जी के मन में प्रभु के अवतार लेने का भेद खुलने का डर था फिर भी दर्शन के लोभ से उनकी आंखें ललचा रही थी. उन्हें लगा कि यदि वह पास नहीं जाते हैं, तो बाद में पछतावा ही रहेगा लेकिन सती से बचने के लिए ही वह लगातार कोई न कोई तरीका तलाशने में लगे थे.

पिता का आदेश पूरा करने राम वन को गए
इसी बीच राम को उनके पिता महाराज दशरथ ने वरदान को पूरा करने के लिए उन्हें 14 वर्ष का वनवास का आदेश दे दिया. राम ने पिता के इस आदेश को सहर्ष स्वीकार किया किंतु साथ में उनकी पत्नी जानकी जी और छोटे भाई लक्ष्मण भी चल पड़े. मूर्ख रावण ने अपने मामा मारीच को मिलाया, तो उसने स्वर्ण मृग का रूप धर लिया और कपट कर राम और लक्ष्मण को घने जंगल में जाने को मजबूर कर दिया. इधर रावण ने सीता जी का हरण कर. जंगल के आश्रम में जब सीता जी नहीं दिखीं तो श्री हरि की आंखों में आंसू आ गए.



