MANAS MANTHAN: पर्वतराज हिमवान ने सप्तर्षियों से शिव जी के बारे में जाना तो उन्हें बहुत ही प्रसन्नता हुई और उन्होंने ऋषियों का यथोचित सम्मान करते हुए कहा कि आग्रह किया कि जब आपने पार्वती के लिए हर तरह से शिव जी को योग्य वर के लिए कहा है तो एक उपकार और कर दीजिए. उन्होंने कहा कि आप विवाह के लिए शुभ दिन, शुभ नक्षत्र और शुभ घड़ी का विचार कर वेदों की विधि के अनुसार शीघ्र ही विवाह के लग्न का निश्चय कर दीजिए. सप्तर्षियों ने उनके आग्रह के अनुसार विवाह का शुभ लग्न विचार कर लिख दिया तो पर्वतराज ने वह लग्न पत्रिका उन्हें ही सौंप कर पैर पकड़ लिए कि आप लोग श्रेष्ठ मुनिवर हैं, मेरा और मेरी पुत्री का कल्याण करिए.
लग्न पत्रिका देख खुद ही पढ़ने लगे ब्रह्मा जी
पर्वतराज हिमवान से लग्न पत्रिका लेकर सप्तर्षि सीधे ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी के पास पहुंच कर उन्हें सौंपी. लग्न पत्रिका देख कर ब्रह्मा जी इतना अधिक प्रसन्न हुए कि प्रेम उनके हृदय में समाता ही नहीं था. ब्रह्मा जी ने लग्न स्वयं ही पढ़ कर सबको सुनाया. वहां उपस्थित मुनियों और देवताओं ने बहुत ध्यान से उसे सुनते हुए खुशी व्यक्त की. उसी समय आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी, बाजे बजने लगे और दसो दिशाओं में मंगल कलश सजा दिए गए. सारे देवता अपने अपने वाहनों को सजाने में जुट गए कि अब तो महादेव के विवाह में जाना ही है और अप्सराएं भी प्रसन्नता में मंगल गीत गाने लगीं. हर तरफ प्रसन्नता का ही वातावरण हो गया.
होने लगी शिव जी की दूल्हे की तरह सजावट
इधर कैलास धाम में गण शिव जी को दूल्हे की तरह सजाने लगे. जटाओं का मुकुट बना कर उस पर सांपों का मौर सजाया गया. शिव जी ने सापों के ही कुंडल और कंगन धारण किए और पूरे शरीर पर विभूती को लगाया. कपड़ों के नाम पर शिव जी ने बाघम्भर लपेटना ही उचित समझा. गोस्वामी तुलसीदास जी श्री राम चरित मानस के बालकांड में लिखते हैं कि शिव जी के सुंदर मस्तक पर चंद्रमा, सिर पर गंगा जी, तीन नेत्र, सांपों का जनेऊ, गले में विष और छाती में नरमुंडों की माला भी थी. तुलसी बाबा लिखते हैं इस तरह उनका वेश अशुभ होने के बाद भी शिव जी कल्याण के धाम और कृपालु हैं. उनके एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में डमरू दिख रहा है, जब वाहन की बात आई तो वह कूद कर बैल पर सवार हो गए, बैल की सवारी करते ही बाजे बजने लगे. देवांगनाएं उन्हें देख कर मुस्कुराकर एक दूसरे से कहने लगीं कि इस वर के योग्य दुलहन संसार में नहीं मिलेगी.
लेख का मर्म
भगवान शंकर के दूल्हा बनने पर उनकी वेशभूषा और बाराती बने उनके गणों की खूब चर्चा हुई. उनके विचित्र वेश धारण करने से सीख मिलती है कि हर व्यक्ति के दो स्वरूप होते हैं अंतः और वाह्य, कई बार सांसारिक लोग वाह्य स्वरूप के आधार पर व्यक्ति के गुण दोष का आंकलन करने लगते हैं जो गलत है. वास्तविक गुण तो आंतरिक होते हैं जिन पर ध्यान देना चाहिए.