मानस मंथन: माता सती के मन में उठा संशय का बवंडर जब देवों के देव महादेव ने किया, प्रभु श्री राम को प्रणाम…जाने इसके पीछे की वजह

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प्रभु श्री राम के अयोध्या में जन्म के समय से उनके दर्शन की अभिलाषा लिए भगवान भोलेनाथ शंकर उनके दर्शन उस समय कर सके जब सीता माता के वियोग से व्याकुल श्री राम जंगल में इधर-उधर भटक रहे थे. उनके दर्शन कर भगवान शिव के हृदय में इस बात को लेकर अत्याधिक प्रसन्नता हुई की अपने आराध्य का दर्शन करने की इच्छा आखिर पूरी हो ही गयी. जी भर कर देखने के बाद भी उचित अवसर न जानकर उन्होंने परिचय देना लेना उचित नहीं समझा इसलिए शांत ही रहे लेकिन उनके मन के भाव चेहरे पर आ ही गए और उनके मुख से सच्चिदानंद भगवान की जय हो की आवाज के साथ हाथ जुड़ गए. 

आखिर क्यों उठा सती के मन में संशय

जंगल में श्री राम का दर्शन करने के समय उनके साथ माता सती भी चल रही थीं, जो कैलास स्वामी की बदलती हुई भाव भंगिमा देख कर मन ही मन विचार करने लगीं कि उनके पति भगवान शंकर की वंदना तो पूरा जगत करता है, फिर जंगल में अपनी पत्नी की विरह में व्याकुल धनुष बाण लिए इस राजपुत्र से दिखने वाले मनुष्य को सच्चिदानंद भगवान कह कर क्यों प्रणाम किया. उनका मन संशय से भर गया और तरह-तरह के विचार आने लगे. वे सोचने लगीं कि यदि वह ब्रह्म हैं सर्वव्यापक हैं, माया रहित, अजन्मे, अगोचर, इच्छा रहित और भेद रहित तथा जो वेद भी नहीं जानते हैं, क्या वह मानव देह धारण कर मनुष्य हो सकता है ? 

अंतर्यामी भगवान को सती की स्थिति देख दया आई

सती फिर सोचने लगीं कि देवताओं के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करने वाले तो विष्णु भगवान हैं. वे भी शिव जी की तरह ही सब कुछ जानते हैं. वे तो ज्ञान के भंडार हैं, ऐसे लक्ष्मीपति और असुरों का नाश करने वाले भगवान विष्णु क्या एक अज्ञानी की तरह अपनी पत्नी को खोजेंगे ? 

गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस के बालकांड में लिखते हैं, कि इस दृश्य को देखने के बाद वे संदेह और संशय के भंवर में फंस गयी, जिसके चलते उनके हृदय में ज्ञान का लुप्त सा हो गया. शिव जी के बारे भी विचार करने लगीं कि वो तो सर्वज्ञ हैं. सती जी ने भगवान शंकर से कहा तो कुछ भी नहीं लेकिन अंतर्यामी भगवान शंकर को सती के मन में उठ रहे भावों को समझने में देर न लगी.  

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