प्रभु श्री राम का पूरा चरित्र ही विलक्षण लीलाओं से भरा है, उन्होंने तो विभिन्न तरह की लीलाओं के माध्यम से संसार का उद्धार करने और मर्यादा का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए ही मानव का अवतार लिया था. ऐसा ही एक प्रसंग भक्ति और रोचकता से भरा है इसलिए तो वे संसार भर के आराध्य भगवान शंकर के आराध्य हैं. जंगल में भटकते श्री राम को कई तरह से समझाने के बाद भी जब भोलेनाथ की पत्नी सती जी उन्हें सच्चिदानंद भगवान मानने को तैयार नहीं हुईं, तो शिव जी ने ही उन्हें परीक्षा लेने भेज दिया और स्वयं एक पेड़ के नीचे उनका इंतजार करने लगे.
यह क्या, जिधर देखो श्री राम के साथ सीता और लक्ष्मण !
श्री राम तो सती का वेश देख तुरंत ही पहचान गए और उन्हें प्रमाण कर शिव जी की कुशलक्षेम पूछी जिससे उन्हें कौतुहल के साथ ही हृदय में दुख भी हुआ. इस पर श्री राम ने अपना प्रभाव दिखाने का निर्णय लिया. सती ने वापस जाते हुए श्री राम माता-सीता और लक्ष्मण जी के साथ उनके आगे चल रहे हैं. गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस के बालकांड में लिखते हैं, कि ऐसा प्रभु ने इसलिए किया ताकि सती उनके सच्चिदानंद रूप को देख सकें और दुख तथा वियोग की पीड़ा से हट कर वे सामान्य हो जाएं. इस दृश्य को देख वे आश्चर्यचकित हुईं और पीछे मुड़ कर देखा तो फिर वही दृश्य. वे जिधर देखतीं उधर ही उन्हें वही दृश्य दिखता.
श्री राम की सेवा करते दिखे शिव, ब्रह्मा और विष्णु
सती जी कुछ और समझ पाती तब तक उनके सामने एक और दृश्य उपस्थित हो गया जिससे उनका कौतुहल बहुत अधिक बढ़ गया. वे देखती हैं कि सामने अनेकों शिव, ब्रह्मा और विष्णु जी हैं, जो एक से बढ़कर एक प्रभाव वाले हैं. विभिन्न प्रकार के सुंदर वस्त्र पहने देवता श्री राम का चरण वंदन और सेवा कर रहे हैं. उन्होंने अनगिनत सती, ब्रह्माणी और लक्ष्मी जी देखीं जो अपने पतियों के अनुरूप ही वस्त्र पहने थीं. सती जी ने जितनी बार रघुनाथ जी को देखा, उनकी शक्तियों सहित उतने ही सारे देवता भी देखे. अनेकों वेश धारण कर सब श्री राम की सेवा पूजा कर रहे हैं लेकिन श्री राम जी का कोई दूसरा रूप नहीं है. सब जगह वही श्री रघुनाथ, सीता और लक्ष्मण जी को देखकर वे डर गयीं कांपते हुए वहीं मार्ग में आंख मूंद कर बैठ गयी और जब आंख खुली तो सामने कुछ भी नहीं था. इस पर उन्होंने श्री राम के चरणों में सिर नवाया और शिव जी के पास चली गयी.