मानस मंथन : भगवान शंकर पर हुई आकाशवाणी से सती को होने लगी चिंता, जानिए शिवजी ने क्या कहा और सती ने कैसे समझा

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श्रीराम की परीक्षा लेने के प्रसंग के बाद, जब महादेव अपनी पत्नी सती के साथ कैलास लौटने लगे, तब आकाशवाणी हुई, “आपकी भक्ति इतनी अडिग और सच्ची है कि संसार में उसे कोई नहीं डिगा सकता. आपके अलावा कोई ऐसा नहीं है जो इतनी कठिन प्रतिज्ञा कर सके. आप श्रीरामचंद्र के सच्चे भक्त, समर्थ और स्वयं भगवान हैं.” श्रीराम की भक्ति अपने भक्तों को असीम शक्ति और संकल्पशक्ति प्रदान करती है, जो उन्हें किसी भी कठिनाई का सामना करने में समर्थ बनाती है.

लाख प्रयासों के बाद भी शिवजी ने मौन नहीं तोड़ा

इस आकाशवाणी को सुनकर सती जी चिंतित हो उठीं. उन्होंने महादेव से संकोचपूर्वक पूछा, “हे प्रभो, कृपाकर बताइए कि ऐसी कौन-सी प्रतिज्ञा आपने की है. आप तो सत्य के धाम और कृपालु हैं.” सती जी ने कई बार भगवान शंकर से प्रश्न करने का प्रयास किया, किंतु वे उनका मौन नहीं तोड़ सकीं. भगवान शिव ने इस प्रसंग पर एक भी शब्द नहीं कहा. सती जी ने अनुमान लगा लिया कि शिवजी सर्वज्ञ हैं, और उन्होंने शायद अपने मन में यह बात स्पष्ट कर ली कि शिवजी परीक्षा की संपूर्ण घटना से अवगत हैं. सती अपने किए पर बहुत पछताईं, उन्होंने मन ही मन माना, “मैंने शिवजी के साथ छल किया है, यह मेरा महान अपराध है. महिलाओं का स्वभाव स्वाभाविक रूप से सरल होता है, लेकिन इस मूर्खता में मैंने अनजाने में एक बहुत बड़ी गलती कर दी.”

जिसमें कृपा, वह अपराध भी व्यक्त नहीं करता

गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस के बालकांड के 57वें दोहे में प्रेम के नियमों की सुंदरता का वर्णन किया है. जैसे जल को दूध में मिलाने पर वह दूध का हिस्सा बन जाता है, वैसे ही सच्चा प्रेम भी स्वाभाविक रूप से दूसरे के गुणों में समाहित हो जाता है. लेकिन जैसे दूध में खटाई डालते ही वह फटकर जल को अलग कर देता है, वैसे ही प्रेम में कपट आने पर वह तुरंत ही संबंधों को तोड़ देता है. सती को अपनी करनी पर इतनी गहरी ग्लानि हुई कि उसका वर्णन असंभव है. पर शिवजी ने अपने कृपालु स्वभाव के कारण सती के अपराध को न केवल क्षमा कर दिया बल्कि उस घटना का जिक्र भी नहीं किया.

लेख का मर्म

यह लेख हमें यह शिक्षा देता है कि प्रेम के नियम अत्यंत सुंदर और प्राकृतिक होते हैं. जब दो लोग प्रेम करते हैं, तो उसमें निस्वार्थता होनी चाहिए. छल, कपट या धोखे से प्रेम अपवित्र हो जाता है और संबंधों को तोड़ देता है. सच्चे प्रेम में निश्छलता और विश्वास आवश्यक हैं और यह हमें सिखाता है कि क्षमा और सच्चाई से प्रेम को अनंत बना सकते हैं.

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