16 वीं शताब्दी में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई काव्य रचना रामचरितमानस अब वैश्विक धार्मिक ग्रंथ बन चुका है और भारत की ही नहीं विश्व की न जाने कितनी भाषाओं में इसका अनुवाद किया जा चुका है. अवधी भाषा में लिखी रामचरितमानस अर्थात राम के जीवन व कर्मों की झलक को हिंदू धर्म और साहित्य की सर्वोत्तम रचना माना जाता है. राम के इस चरित की रचना सबसे पहले किसने की और लोक कल्याणकारी इस कथा को सबसे पहले किसे सुनाया, जानने के पहले इस ग्रंथ के महत्व के बारे में भी जान लीजिए.
यूनेस्को ने भी मानस को दी मान्यता
रामचरितमानस की लोकप्रियता, मर्यादित आचरण की सीख, परिवार में पुत्र, पत्नी, भाई और मित्रों के प्रति समर्पण की नीति को देखते हुए ही मई 2024 में यूनेस्को ने ‘मेमोरी ऑफ़ द वर्ल्ड कमेटी फ़ॉर एशिया एंड द पैसिफ़िक’ के क्षेत्रीय रजिस्टर में शामिल किया है. रामचरितमानस को भारत ही नहीं बल्कि थाईलैंड, कम्बोडिया, इंडोनेशिया और श्रीलंका जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भी चाव के साथ पढ़ा जाता है. यूनेस्को ने माना कि यह साहित्यिक धरोहर आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करने में सहायक होगी.

भगवान शिव ने की रचना
रामचरितमानस की रचना संसार में सबसे पहले भगवान शंकर ने की थी, उसे अपने मन में ही संजो कर रख लिया. वह समय का इंतजार करने लगे और जब उन्हें उचित समय प्रतीत हुआ, तो सबसे पहले उन्होंने इस प्रभु श्री राम के इस अनुपम चरित्र की कथा अपनी पत्नी पार्वती को सुनाई. गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस को भगवान शंकर और माता पार्वती के बीच संवाद, काकभुशुण्डि और गरुड़, याज्ञवल्क्य और भरद्वाज ऋषि तथा विभिन्न मुनियों के साथ संवाद के आधार पर लिखा. गोस्वामी जी ने खुद ही मानस में लिखा कि इस सुंदर ग्रंथ रूपी सरोवर के यही चार प्रमुख घाट हैं. दोहा, चौपाई, छंद, सोरठा तथा श्लोकों से युक्त इस ग्रंथ में 27 श्लोक, 4608 चौपाइयां, 1074 दोहे, 207 सोरठा और छंद 86 हैं.



