MAHAKUMBH 2025 : प्रयागराज को तीर्थों का राजा ऐसे ही नहीं माना जाता है, यहां पर एक से बढ़कर एक तीर्थ हैं
MAHAKUMBH 2025 : प्रयागराज को तीर्थों का राजा ऐसे ही नहीं माना जाता है, यहां पर एक से बढ़कर एक तीर्थ हैं जिनका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है. महाकुंभ के अवसर पर त्रिवेणी में स्नान करने वाले यदि श्रद्धालुओं के पास समय है, तो इन पवित्र तीर्थों के दर्शन कर पुण्य लाभ अवश्य ही प्राप्त करना चाहिए. तो आइए इस आर्टिकल में आपको प्रयागराज के आसपास के उन स्थानों के बारे में बताते हैं.
दुर्वाषा ऋषि और ऐन्द्री देवी का आश्रम प्रयागराज
दुर्वाषा ऋषि और ऐन्द्री देवी का आश्रम
ब्रह्मा जी के पुत्र अत्रि ऋषि और उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र के रूप में जन्में दुर्वासा ऋषि का आश्रम त्रिवेणी संगम तट से कुछ दूरी पर एक गांव में माना जाता है. सर्वाधिक क्रोधी की पहचान वाले दुर्वासा ऋषि को भगवान शंकर का अंश माना जाता है. रामायण और महाभारत काल के दुर्वासा मुनि का आश्रम गांव में था जहां पर आज भी उनका मंदिर है. पास में ही ऐन्द्री देवी का आश्रम है जिन्हें आनंदी देवी भी कहा जाता है. मान्यता है कि महर्षि दुर्वासा ने तपस्या करते समय राक्षसों द्वारा विघ्न पड़ने की आशंका को देखते हुए ऐन्द्री देवी का आह्वान किया था और उनकी स्थापना महर्षि भरद्वाज ने की थी.
दुर्योधन के छल की याद दिलाता भवन
द्वापर युग के महाभारत काल की याद दिलाने वाला एक स्थान भी है. दुर्योधन ने पांडवों को जलाकर मार डालने के लिए छलपूर्वक एक भवन का निर्माण कराया था, जिसका नाम लाक्षागृह था जिसे स्थानीय लोग लच्छागिर के नाम से जानते हैं. यह स्थान दुर्वासा आश्रम से करीब 28 किलोमीटर की दूरी पर है.
यहां पर लक्ष्मण ने, माता सीता को छोड़ा
वैसे तो देश में कई स्थानों पर महर्षि वाल्मीकि के आश्रम हैं किंतु प्रयाग से आगे भीटी नाम के रेलवे स्टेशन के निकट सीतामढ़ी का वाल्मीकि आश्रम है. मान्यता है कि वनवास से लौटने पर श्री राम के राजा बनने के बाद लांछन लगने पर महाराज के आदेश पर लक्ष्मण ने सीता माता को इसी स्थान पर छोड़ा था. इस स्थान को इसलिए पवित्र माना जाता है क्योंकि यहां पर महर्षि वाल्मीकि ने माता सीता का आश्रय दिया और उन्होंने लव-कुश को जन्म दिया.
भगवान श्री राम ने जहां किया, रात्रि विश्राम
श्रृंगवेरपुर वह पवित्र स्थान है जहां पर भगवान श्री राम ने निषादराज गुह के आग्रह पर रात्रि विश्राम किया था. यहां पर श्रृंगी ऋषि और उनकी पत्नी महाराज दशरथ की पुत्री शांता का मंदिर भी है. श्रृंगवेरपुर से करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर रामचौरा ग्राम में गंगा किनारे श्री राम चन्द्र जी के चरणों का मंदिर है.