MAHAKUMBH 2025: प्रयागराज महाकुंभ में स्नान के साथ जरुर करें परिक्रमा, ये है परिक्रमा के नियम

0
280
महाकुंभ में स्नान के साथ परिक्रमा करना भी होता है बेहद जरुरी

MAHAKUMBH 2025: 144 वर्षों के बाद बने अद्भुत संयोग के चलते इन दिनों दिव्य संतों के साथ लाखों-करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु अपने मन कर्म को शुद्ध करने और आध्यात्मिक मुक्ति प्राप्त करने के लिए प्रयागराज महाकुंभ में स्नान के लिए पहुंच रहे है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुंभ मेला का आयोजन अमृत के समुद्र मंथन से जुड़ा हुआ है, इसलिए यहां देवताओं का भी वास रहता है, जिसकी वजह से यहां-यहां का कण-कण पवित्र है. यदि आप भी तीर्थराज प्रयाग में महाकुंभ के अवसर पर त्रिवेणी में स्नान करने जा रहे हैं, तो परिक्रमा करना बिल्कुल भी न भूलें. यहां पर दो प्रकार की परिक्रमा होती है पहली अन्तर्वेदी और दूसरी बहिर्वेदी. परिक्रमा करने के पहले उसके बारे में भी जानना जरूरी है. 

बिन्दुमाथव पूजन से शुरु होती है, अंन्तर्वेदी परिक्रमा

यह परिक्रमा दो दिनों में पूर्ण होती है जिसका प्रारम्भ त्रिवेणी स्नान करने के बाद जलरूप में विराजमान बिन्दुमाधव का पूजन करने के साथ ही होता है. यमुना जी में मधुकुल्या, घृतकुल्या, निरंजन तीर्थ, आदित्य तीर्थ और ऋणमोचन तीर्थ हैं जिनमें स्नान एवं मार्जन किया जाता है. यमुना किनारे ही पापमोचन तीर्थ, परशुराम तीर्थ, गोघट्टन तीर्थ, पिशाचमोचन तीर्थ, कामलेश्वर तीर्थ, कपिल तीर्थ, इंद्रेश्वर शिव, तक्षक कुण्ड, तक्षकेश्वर तीर्थ, कालियहृद, वक्रतीर्थ, सिन्धुसागर तीर्थ होते हुए पाण्डवकूप, वरुणकूप होकर अन्य पवित्र स्थानों से गुजरते हुए भरद्वाज आश्रम में रात्रि विश्राम होता है. दूसरे दिन प्रातः भरद्वाजेश्वर, सीतारामाश्रम, विश्वामित्र आश्रम, गौतम आश्रम, जमदग्नि आश्रम, वशिष्ठ आश्रम, वायु आश्रम के दर्शन कर उच्चैश्रवा स्थान, नागवासुकि, ब्रह्मकुण्ड, दशास्वमेधेश्वर, लक्ष्मी तीर्थ, महोदधि तीर्थ, मलापहतीर्थ, उर्वशी कुण्ड, शुक्र तीर्थ, विश्वामित्र तीर्थ, ब्रहस्पति तीर्थ, अत्रि तीर्थ, दत्तात्रेय तीर्थ, दुर्वासा तीर्थ, सोम तीर्थ, सारस्वत तीर्थ आदि को प्रणाम करने के बाद त्रिवेणी में स्नान कर परिक्रमा पूर्ण होती है.     

प्रयागराज महाकुंभ में दो प्रकार की परिक्रमा होती है पहली अन्तर्वेदी और दूसरी बहिर्वेदी

अक्षयवट दर्शन से शुरू करें, बहिर्वेदी परिक्रमा

बहिर्वेदी परिक्रमा दस दिन की होती है जिसमें पहले दिन त्रिवेणी स्नानपूजन करके अक्षयवट का दर्शन कर किले के नीचे से यमुना पार करनी चाहिए. दूसरे पार शूलकण्ठेश्वर, उर्वशी कुण्ड, बिन्दु माधव आदि के दर्शन कर सोमेश्वर नाथ में रात्रि विश्राम करना चाहिए. दूसरे दिन सोमतीर्थ, सूर्य तीर्थ, अग्नितीर्थ आदि का स्मरण एवं प्रणाम करते हुए देवरिख गांव में महाप्रभु वल्लभाचार्य की बैठक और नैनी में गदा माधव का दर्शन कर रामसागर पर रात्रि विश्राम होता है. तीसरे दिन बिकर देवरिया में यमुनातट पर रात्रि विश्राम एवं श्राद्ध कर्म करने से अनन्त फल प्राप्त होता है और पूर्वजों को तृप्ति होती है. चौथे दिन बिकर में यमुनापार होकर करहदा के पास बनखण्डी महादेव में रात्रि विश्राम किया जाता है. पांचवें दिन बेगमसराय से आगे नीमा घाट होते हुए द्रौपदीघाट पर रात्रि विश्राम किया जाता है. छठवें दिन शिवकोटितीर्थ पर रात्रि विश्राम करना चाहिए. सातवें दिन पड़िला महादेव के दर्शन कर मानस तीर्थ पर रात विश्राम किया जाता है. आठवें दिन झूसी होते हुए नागेश्वरनाथ में नाग तीर्थ के दर्शन कर शंखमाधव पर रात्रि विश्राम करना चाहिए. नवें दिन व्यास आश्रम, समुद्र कूप, संकष्टहर माधव होते हुए झूसी में रात्रि विश्राम किया जाता है, दसवें दिन झूसी से त्रिवेणी जाकर परिक्रमा पूरी होती है. बहुर्वेदी परिक्रमा करने वालों को अपनी दस दिवसीय परिक्रमा के अंतिम दिन अन्तर्वेदी परिक्रमा करनी चाहिए.  

+ posts

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here