Mahakaleshwar Jyotirlinga : भगवान शिव के इस मंदिर में पूजा अर्चना करने वालों की नहीं होती अकाल मृत्यु, पुराणों और महाभारत में भी है उल्लेख 

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Mahakaleshwar Jyotirlinga : मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जैन का महाकालेश्वर महादेव मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है.

Mahakaleshwar Jyotirlinga : मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जैन का महाकालेश्वर महादेव मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है. इसका उल्लेख पुराणों, महाभारत और महाकवि कालिदास की रचनाओं में भी मिलता है. स्वयंभू, दक्षिणमुखी महाकालेश्वर महादेव के के दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इन महादेव का दर्शन पूजन करने वालों की कभी भी अकाल मृत्यु नहीं होती है.  

भगवान की भस्म आरती की क्या है मान्यता

उज्जैन का प्रचीन नाम अवंतिका है, मान्यता के अनुसार यहां पर दूषण नाम के राक्षस का आतंक व्याप्त था. उसके आतंक से दुखी लोग भगवान शिव की आराधना कर उसके नष्ट होने की प्रार्थना करते थे. भगवान ने लोगों की प्रार्थना को सुना और उसे जला कर नष्ट कर दिया, इतना ही नहीं महादेव ने उसकी भस्म से अपना श्रृंगार भी किया. भक्तों की प्रार्थना पर शिव जी वहीं पर महाकाल के रूप में बस गए. इसी कारण इस मंदिर का नाम महाकालेश्वर रख दिया गया. कहते हैं इसी कारण से यहां शिवलिंग की भस्म आरती होने लगी. शिवपुराण के अनुसार भस्म ही सृष्टि का सार है. क्योंकि एक दिन पूरी दुनिया को भस्म बनना है बस इसी भस्म को भगवान शिव सदैव धारण किए रहते हैं. इसका अर्थ है कि एक दिन यह संपूर्ण सृष्टि शिवजी में ही विलीन हो जाएगी. अब भस्म तैयार करने के लिए प्राकृतिक चीजों का इस्तेमाल किया जाता है. 

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यूं तो महाकालेश्वर मंदिर बहुत प्राचीन है इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में 1107 से यवनों का शासन था

मंदिर का इतिहास

यूं तो महाकालेश्वर मंदिर बहुत प्राचीन है, इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में 1107 से यवनों का शासन था, लेकिन 1235 ईस्वी में इल्तुत्मिश ने इस मंदिर पर हमला कर इसे ध्वस्त कर दिया. इनके शासनकाल में अवंतिका की लगभग 4500 वर्षों में स्थापित हिन्दु प्राचीन धार्मिक परम्पराएं प्राय: नष्ट हो चुकी थीं. 1690 में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण किया और 1728 में मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र पर आधिपत्य स्थापित कर लिया. 1731 से 1809 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही. हिंदू राजाओं ने इस ज्योतिर्लिंग का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण कराया, राजा भोज ने मंदिर को विस्तार दिया जिसके कारण मंदिर अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त कर सका. सिंहस्थ पर्व के पहले मंदिर को अच्छी तरह से सजाया जाता है. सन 1968 के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था. इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को देखते हुए बिड़ला उद्योग समूह ने 1980 के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया. महाकालेश्वर मंदिर की व्यवस्था के लिए एक प्रशासनिक समिति का गठन किया गया है, जिसके निर्देशन में यहां की व्यवस्था सुचारु रूप से चल रही है. हाल ही में इसके 118 शिखरों पर 16 किलो स्वर्ण परत चढ़ाई गई. 

रात में कोई राजा यहां नहीं रुकता

महाकाल की नगरी उज्जैन में रात में कोई राजा नहीं रुकता, कहा जाता है कि यहां के राजा महाकाल हैं जो राजा यहां रुकता है, उसका राजपाट सब नष्ट हो जाता है या फिर उसकी मौत हो जाती है. इन बातों का कितना आधार है, यह तो कोई नहीं जानता लेकिन  महाकाल के अलावा केवल विक्रमादित्य ही ऐसे राजा थे, जिन्होंने उज्जैन में रात विश्राम किया है. यहां तक कि सरकारों के मंत्री भी रात्रि विश्राम यहां नहीं करते.  

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