Kurukshetra Battle : कुरुक्षेत्र के मैदान में महाभारत के युद्ध को सभी जानते हैं किंतु क्या आप जानते हैं कुरुवंश ने इसी मैदान पर एक युद्ध पहले भी लड़ा था
कुरुक्षेत्र का मैदान महाभारत युद्ध के लिए प्रसिद्ध है जिसमें कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ।
Kurukshetra Battle : कुरुक्षेत्र का मैदान महाभारत युद्ध के लिए प्रसिद्ध है जिसमें कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हुआ। इस युद्ध में उस काल के जितने भी वीर थे, सभी किसी न किसी पक्ष की तरफ से युद्ध कर रहे थे लेकिन बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि इसी प्रसिद्ध और ऐतिहासिक मैदान में इसी कुरुवंश का एक और भी युद्ध हो चुका था, लेख को पूरा पढ़िए और जानिए यह युद्ध किसके-किसके बीच हुआ और कौन जीता।
राजा शांतनु का स्वर्गवास
राजा शांतनु और गंगा के पुत्र देवव्रत जिन्हें सबसे कठिन प्रतिज्ञा लेने के कारण भीष्म कहा जाने लगा, ने अपने पिता राजा शांतनु का विवाह सत्यवती से करा दिया। सत्यवती के गर्भ से दो पुत्र हुए चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद के युवावस्था में प्रवेश करते हुए राजा शांतनु स्वर्गवासी हो गए। इस विकट स्थिति में गंगापुत्र भीष्म ने रानी सत्यवती से विचार कर चित्रांगद को राजगद्दी पर बैठाया। चित्रांगद बहुत ही वीर व साहसी था। उसने अपने पराक्रम से युद्ध कर सभी राजाओं को पराजित कर दिया। वह किसी भी मनुष्य को अपने बराबर नहीं समझता था। जबरन युद्ध कर दूसरे राजाओं को पराजित करने में उसे बहुत ही आनंद आता था।
गंधर्वराज से हुआ चित्रांगद का युद्ध
चित्रांगद के पराक्रम और अभिमान की बात गंधर्वराज को पता लगी, गंधर्वराज का नाम भी चित्रांगद ही था। गंधर्वराज चित्रांगद ने शांतनु नंदन चित्रांगद के राज्य पर हमला बोल दिया और दोनों के बीच उसी ऐतिहासिक कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध हुआ। सरस्वती नदी के तट पर दोनों के बीच तीन वर्षों तक घमासान युद्ध हुआ, कोई भी हार मानने को नहीं तैयार था। गंधर्वराज चित्रांगद बहुत ही मायावी था इसलिए उसने मायावी युद्ध किया जिसके सामने शांतनुनंदन नहीं टिक सके और उसके हाथों मृत्यु हो गयी।
विचित्रवीर्य का हुआ राज्याभिषेक
चित्रांगद की मृत्यु के बाद देवव्रत भीष्म ने भाई का अंतिम संस्कार किया और मां सत्यवती की सलाह पर विचित्रवीर्य का राज्याभिषेक कराया। विचित्रवीर्य तो अभी बालक ही थे लेकिन इतने बड़े राज्य को राजा विहीन नहीं रखा जा सकता था इसलिए उन्हें राजगद्दी पर बैठाया गया। विचित्रवीर्य बालक होने के बाद भी बड़े भाई भीष्म की सलाह से धीरे-धीरे राज्य व्यवस्था समझने लगे। विचित्रवीर्य बहुत ही आज्ञाकारी थे जबकि भीष्म तो राज्य के रक्षक के रूप में कार्य कर रहे थे।