Kumbh Mela 2025: दुनिया का सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ जनवरी 2025 में होगा. इसमें बड़े साधु संतों से लेकर सामान्य जन और विदेशा सैलानी उमड़ते हैं. इस बार का महाकुंभ प्रयागराज में हो रहा है, जिसकी तैयारियां तेजी से चल रही हैं. कुंभ मेला चाहे महाकुंभ हो या अर्ध कुंभ अथवा कुंभ, मेला अवधि के पवित्र दिनों में एक निश्चित समय पर त्रिवेणी में स्नान करने वाले साधु-संतों या अखाड़ों के तपस्वियों के स्नान को शाही स्नान कहा जाता है. इस शाही स्नान के दौरान साधु संतों के अखाड़े उससे संबद्ध शिष्य स्नान के लिए जुलूस लेकर जाते हैं, जिसमें वह अपनी भव्यता और दिव्यता के साथ शक्ति का भी प्रदर्शन करते हैं. राजा की तरह अखाड़ों के रथों पर विराजते हैं और साथ में शिष्य घोड़े और हाथियों पर चलते हैं. मान्यता है कि कुंभ मेले में शाही स्नान के दौरान पवित्र नदी के जल में डुबकी लगाने से अमरता मिलती है.
इन तिथियों में होता है स्नान
महाकुंभ की परम्परा के अनुसार पहला शाही स्नान मकर संक्रांति के दिन होता है और इसके साथ ही शुभ स्नान अनुष्ठान की शुरुआत हो जाती है. इसके बाद दूसरा शाही स्नान मौनी अमावस्या और तीसरा तथा अंतिम शाही स्नान बसंत पंचमी के दिन किया जाता है. इन तीन शाही स्नानों के अलावा पौष पूर्णिमा को पहला प्रमुख स्नान होता है जिसके साथ ही महाकुंभ मेले की औपचारिक शुरुआत हो जाएगी. अचला सप्तमी को दूसरा प्रमुख, तीसरा प्रमुख स्नान माघी पूर्णिमा को होगा. इसके बाद महाशिवरात्रि को अंतिम महत्वपूर्ण स्नान होगा.
सदियों पुरानी है शाही स्नान की परम्परा
कुंभ मेला में शाही स्नान की परम्परा के बारे में धर्म शास्त्रों में कोई विशिष्ट उल्लेख तो नहीं है फिर भी माना जाता है कि यह परंपरा सदियों पुरानी है. माना जाता है कि इसकी शुरुआत 14वीं से 16वीं शताब्दी के बीच हुई थी. दरअसल पहले स्नान करने के चक्कर में साधु संतों के अखाड़ों में टकराव होने लगा जिससे बचने के लिए तत्कालीन शासकों ने संतों के साथ बैठ कर एक निश्चित क्रम निर्धारित किया. शाही स्नान निर्धारित तिथियों में बहुत सुबह या मध्य रात्रि में शुरू होता है. स्थानीय लोग जुलूस के मार्ग को शानदार रंगोली और फूलों की पंखुड़ियों से सजाते हैं. अखाड़े गाजे बाजे के साथ निकलते हैं और हर हर महादेव तथा गंगा मैया की जय जैसे नारे लगाते रहते हैं. नागा साधु अपने शरीर पर राख मलने के साथ ही रुद्राक्ष की मालाएं पहनकर तलवार, त्रिशूल आदि शस्त्रों के साथ अपने अखाड़े के झंडे लेकर निकलते हैं.
कुंभ के दौरान देवता करते हैं वास
मान्यता है कि कुंभ मेले के दौरान सभी देवता वहां पर वास करते हैं ,जिससे वहां की पवित्रता और दिव्यता और भी बढ़ जाती है. साधु संतों के स्नान करने के बाद ही श्रद्धालुओं को स्नान करने की अनुमति दी जाती है. बिना साधु संतों के स्नान किए श्रद्धालु स्नान नहीं कर सकते हैं. शाही स्नान के बाद संतों का जुलूस अपने शिविर की ओर लौटता है, तो श्रद्धालु यात्रा मार्ग के किनारे खड़े होकर उनके दर्शन कर अपने धन्य समझते हैं. कुछ लोग को उनके चरणों की धूल को श्रद्धा भाव से अपने माथे पर लगाते हैं. मान्यता है कि कुंभ में स्नान करने वाले व्यक्ति के सभी पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. इससे पितृ भी शांत होते हैं और व्यक्ति को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है. माना जाता है कि कुंभ के दौरान त्रिवेणी का जल अमृत बन जाता है और इसमें स्नान करने वाले को अमरता प्राप्त होती है.