पिता दक्ष के यहां अपने पति भगवान शंकर का अपमान होता देख सती ने वहीं पर अपना जीवन समाप्त कर लिया और फिर शिव जी के गणों ने क्रोध में यज्ञ को ही भस्म कर डाला. गोस्वामी तुलसीदास राम चरित मानस के बालकांड में लिखते हैं, शिवद्रोही की जो गति होती है वह प्रजापतियों के नायक दक्ष की हुई. सती ने मरते समय भगवान से यही प्रार्थना की कि मेरा जन्म जन्मांतर तक शिव जी के चरणों में अनुराग रहे. बस इसके बाद उन्होंने पर्वतराज हिमाचल के घर पर पुत्री के रूप में जन्म लिया. पर्वतराज की पुत्री होने के नाते उनका नाम पार्वती रखा गया.
पर्वतराज की पुत्री के जन्म लेते ही, सब जगह होने लगा मंगल
पार्वती जी के जन्म लेते ही पूरा हिमालय प्रदेश सिद्धियों और संपत्तियों से भरपूर हो गया. बड़े-बड़े ऋषि और मुनियों ने सुंदर आश्रम बना कर तप करना शुरू किया तो पर्वतराज ने उनकी सुविधाओं का ध्यान रखते हुए उन स्थानों पर औषधीय वृक्ष और झरने आदि बना दिया दिए. इतना ही नहीं सूखे हुए पेड़ भी हरे भरे और फल फूल से लद गए. वहां पर स्वाभाविक रूप से मणियों की खान पैदा हो गयी. जो पशु पक्षी एक दूसरे के शत्रु थे और हमला करने का प्रयास करते रहते थे, उन सभी के बीच अचानक ही वैर भाव समाप्त होकर अच्छे संबंध स्थापित हो गए. हिंसक पशुओं ने हिंसा करना छोड़ दिया. पार्वती जी के जन्म के साथ पर्वत इस तरह से शोभायमान होने लगा जैसे कोई राम भक्ति पाकर शोभायमान हो जाता है. पर्वतराज के घर बेटी आने की खुशी में रोज मंगल उत्सव होने लगे जिसमें ब्रह्मा जी सहित अन्य देव यशगान करने लगे.
पार्वती जी का जन्म सुन नारद मुनि अपने को न रोक पाए
महर्षि नारद ने पर्वतराज के घर पुत्री के जन्म की बात सुनी, तो वो अपना कौतुहल रोक नहीं पाए और उनके घर पर जा पहुंचे. उनके आगमन की जानकारी पर पर्वतराज स्वयं ही उन्हें द्वार पर लेने पहुंचे और चरण धोकर आदर सत्कार करने के बाद उचित आसन दिया. पत्नी सहित उनके चरणों में सिर नवाकर चरण धोने के बाद निकले जल को पूरे घर में छिड़ककर पवित्र किया. इसके बाद पुत्री को बुलाकर आग्रह किया, आपको तीनों कालों के बारे में जानकारी है और सर्वज्ञ हैं. कृपा करके मेरी प्रिय पुत्री के भविष्य के बारे में बताये.
नारद जी ने बताया, पार्वती गुणों की खान है
पर्वतराज की इस बात पर नारद मुनि हंसे और बोले, तुम्हारी कन्या तो गुणों की खान है इसलिए उसके गुणों के बारे में क्या कहना, वह स्वभाव से सुंदर, सुशील और समझदार है. पार्वती के अलावा वह उमा, अम्बिका और भवानी नामों से भी यह विख्यात होगी. यह अपने पति की सदैव प्यारी रहेगी, इसका सुहाग सदा अचल रहेगा और इसके मात- पिता भी उनसे विवाह कर यश प्राप्त करेंगे.
लेख का मर्म
सती की मृत्यु और पार्वती के रूप में पुनः जन्म की कथा हमें सीख देती है कि यदि सच्चे मन से भगवान की आराधना कर उनसे बिना किसी स्वार्थ के कुछ मांगा जाए तो वो भक्त की झोली कभी खाली नहीं जाने देते हैं. साथ ही ऐसे लोगों सुंदर, सुशील, ऐश्वर्यवान और ऐश्वर्य कीर्ति वाले होते हैं.