ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण धर्म नगरी मथुरा के वृंदावन में भूतेश्वर स्थान पर माता कात्यायनी देवी का शक्तिपीठ स्थित है.
Katyayani Shaktipeeth : ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण धर्म नगरी मथुरा के वृंदावन में भूतेश्वर स्थान पर माता कात्यायनी देवी का शक्तिपीठ स्थित है. 51 शक्तिपीठों में से एक इस मंदिर का निर्माण सती माता के केश यानी बाल गिरने के स्थान पर हुआ. मंदिर को उमा शक्तिपीठ या चामुंडा के नाम से भी जाना जाता है.
राधा रानी ने किया था देवी का पूजन
कहा जाता है कि इस मंदिर में राधा रानी ने अन्य गोपियों के साथ देवी उमा की पूजा की थी. पूजन में उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को पति के रूप में पाने की इच्छा रखी थी. देवी ने सभी गोपियों को आशीर्वाद दिया जिसके फलस्वरूप भगवान श्री कृष्ण ने उनके साथ महारास किया. श्री मद्भागवत के अनुसार इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण ने देवी की बालू की मूर्ति बनाकर पूजा की और फिर मथुरा के राजा कंस का वध कर धर्म की स्थापना की.
वृंदावन धाम में स्थित कात्यायनी शक्तिपीठ के वर्तमान मंदिर का निर्माण 1923 में बताया जाता है
मंदिर निर्माण की कहानी
वृंदावन धाम में स्थित कात्यायनी शक्तिपीठ के वर्तमान मंदिर का निर्माण 1923 में बताया जाता है. इसका निर्माण केशवानंद महाराज ने करवाया था जिसकी बहुत ही दिलचस्प कहानी है. स्वामी जी ने बाल्यकाल में ही घर छोड़ कर वाराणसी में समय बिताया. वहां उन्होंने महान संत श्यामाचरण लाहिड़ी महाराज से दीक्षा ली और उनके आदेश पर ही हिमालय में तप करने चले गए. 33 वर्षों तक तप और अध्यात्म साधना में लीन रहने के बाद उन्हें दिव्य स्वप्न आया कि वृंदावन जा कर मां कात्यायनी की पीठ पर मंदिर का निर्माण करो. वृंदावन पहुंच कर ध्यान व योग बल से उस स्थान का पता लगाया जहां पर माता सती के केश गिरे थे. बस इसी मंदिर के पास एक आश्रम बना कर वे रहते हुए मां की सेवा करने लगे. माता की पूजा करते हुए उन्होंने 1942 में महासमाधि ली.
मंदिर का वास्तु व मेला
कात्यायनी पीठ मंदिर का निर्माण सफेद संगमरमर के पत्थरों से हुआ है जिसमें काले पत्थर के ऊंचे खंभे हैं. मुख्य प्रांगण की ओर जाने वाली सीढ़ियों के ठीक बगल में दो सुनहरे रंग के शेर हैं, जो मां के वाहन का प्रतिनिधित्व का करते हैं. नवरात्र, कृष्ण जन्माष्टमी और दीपावली की रात्रि में मां की आराधना प्रमुख उत्सव है. नवरात्र में तो यहां पर उत्सव होता ही है, इसके अलावा भगवान श्री कृष्ण के युग की याद दिलाते हुए यहां भव्यता और उत्साह के साथ होली मनाई जाती है. कृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव भी मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता है. दीपावली पर कात्यायनी व्रत कर लोग मां की आराधना करते हैं.