10 वीं शताब्दी में स्थापित हुआ हिमाचल के चंबा में लक्ष्मी नारायण मंदिर, विग्रह बनवाने के लिए राजा के आठ पुत्रों को गंवानी पड़ी जान

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हिमाचल के चंबा में स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर अपनी ऐतिहासिकता, पौराणिकता और वास्तुकला के लिए जाना जाता है. 10 वीं शताब्दी में चंबा के राजा साहिल वर्मन ने यहां पर लक्ष्मी नारायण मंदिर बनवाया था. मंदिर में भगवान नारायण अर्थात विष्णु जी की सवारी गरुण की छवि एक धातु की है. 

अनुपम और अद्भुत है मंदिर की वास्तुकला 

ऐतिहासिक महत्व के इस लक्ष्मी नारायण मंदिर की वास्तुकला अनुपम और अद्भुत है. इसमें एक मंडप और एक लकड़ी की चटाई के साथ छोटा सा अंतर दिया गया है. मंदिर में तीन अलग-अलग भाग है, जिसमें एक में गर्भगृह है जहां देवता स्थापित हैं. गर्भगृह के सामने एक मंडप और प्रार्थना कक्ष है. मंडप में अक्सर धार्मिक भजनों का गायन वादन होता रहता है. वास्तुकारों ने स्थानीय मौसम को ध्यान में रखते हुए सीप की छत बनाई है और ठंड से बचने के लिए पहिए के आकार की छत दी गयी है.

मुगल शासक औरंगजेब की भी रही टेढ़ी नजर

दूर-दूर तक ख्याति पा चुके इस ऐतिहासिक मंदिर के बारे में जब मुगल शासक औरंगजेब को जानकारी मिली, तो उसने वहां के तत्कालीन राजा छत्र सिंह को मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया. किंतु मंदिर के प्रति आस्थावान राजा ने उनका आदेश मानने से ही इनकार कर दिया और चुनौती देते हुए मंदिर में 1678 में सोने की परत चढ़वाई.

आठ पुत्रों के बलिदान के बाद मिला विग्रह का पत्थर

मंदिर के इतिहास के साथ राजा साहिल वर्मन के आठ पुत्रों के बलिदान की कहानी भी जुड़ी है. राजा ने मंदिर बनाने के साथ ही निर्णय लिया कि इसमें विग्रह का निर्माण संगमरमर के पत्थर से किया जाए और इसके लिए उन्होंने अपने नौ में से आठ पुत्रों को विंध्याचल में पत्थर लेने के लिए भेजा. पुत्रों ने पत्थर तो प्राप्त किया किंतु रास्ते में डाकुओं ने हमला कर उनकी हत्या कर उन्हें लूट लिया. राजा साहिल वर्मन इतनी बड़ी घटना के बाद भी टूटे नहीं बल्कि मंदिर निर्माण के संकल्प पर कायम रहे और अपने सबसे बड़े बेटे युगकार वर्मन को बेशकीमती पत्थर लाने के लिए भेजा. पत्थर हासिल कर युगकार हिमाचल के लिए लौट ही रहे थे, कि उन्हें भी डाकुओं ने घेर कर हमला किया. उसी समय कुछ संन्यासी वहां पर पहुंच गए और उन्होंने राजकुमार युगकार को बचा लिया. संगमरमर पत्थर लेकर लौटने पर उसी से भगवान नारायण विष्णु और माता लक्ष्मी की सुंदर मूर्ति बना कर मंदिर में स्थापित कराई गई. तभी से चंबा में सन्यासियों का सम्मान किया जाने लगा और पूरे चंबा में किसी भी संन्यासी बिना दान दक्षिणा दिए नहीं जाने दिया जाता है. दरअसल लक्ष्मी नारायण चंबा के ईष्टदेव भी हैं और स्थानीय लोगों द्वारा उनका बहुत सम्मान किया जाता है. 

मंदिर में लक्ष्मी नारायण के अलावा अन्य विग्रह भी

महान ऐतिहासिक महत्व और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध मंदिर परिसर के अंदर राजा साहिल वर्मन के बाद के अन्य राजाओं ने भी विग्रह स्थापित किए और उनका जीर्णोद्धार भी किया है. 10 वीं शताब्दी के इस मंदिर परिसर में राजा साहिल वर्मन के पुत्र युगकार वर्मन ने गौरी शंकर के विग्रह की स्थापना कराई जबकि मुख्य द्वार के ऊपर धातु की बनी गरुड़ प्रतिमा को राजा बलभद्र वर्मा ने स्थापित किया था. राधा कृष्ण मंदिर की स्थापना 1825 में राजा जीत सिंह की पत्नी रानी सरदा ने कराई थी. कुछ लोगों का यह भी मानना ​​है, कि यह मंदिर राज गुरु योगी चर्पटनाथ को समर्पित है, जिन्होंने सभी महत्वपूर्ण मामलों में राजा का मार्गदर्शन किया था. परिसर में एक कला संग्रहालय है जिसमें चंबा के ऐतिहासिक दस्तावेज सुरक्षित हैं और एक पुस्तकालय भी है, जिसमें कई पुरानी पांडुलिपि हैं. इन चीजों से परिसर और भी आकर्षक हो जाता है.

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