समाज में हर कोई किसी न किसी कारण दुखी है यानी वह सुख के अभाव में और सुख की तलाश कर रहा है. एक दूसरे की चर्चा को आप ध्यान से सुनेंगे तो पाएंगे कि उनकी बातचीत में दुख का ही अंश है यानी दोनों ही अपने-अपने कारणों से दुखी हैं. यदि आप सर्वे करने निकलें तो पाएंगे कि एक हजार या दस हजार लोगों में दो तीन लोग ही मुश्किल से यह कहते मिलेंगे कि उन्हें कोई दुख नहीं और वह सुख तथा संतुष्टि के साथ जीवन यापन कर रहे हैं.
धनी हो या विद्वान सबके अपने-अपने दुख
अब एक सहज प्रश्न सबके सामने खड़ा होता है कि आखिर यह सुख है क्या. गहराई से समझने का प्रयास करें तो पाएंगे कि सुख की तलाश में भौतिक संसाधनों की तरफ व्यर्थ ही भाग रहे हैं क्योंकि वहां पर सुख है ही नहीं बल्कि पाने और चाहने की लालसा कभी खत्म ही नहीं होती है. सुख पर विचार करें तो पाएंगे कि धन वैभव, मान सम्मान, दूसरों से प्रशंसा, बड़े-बड़े सरकारी और राजनीतिक पदों पर बैठे लोगों के पास भी कोई न कोई दुख अवश्य ही जुड़ा हुआ है. इन लोगों से आप एकांत में मिल कर पूछें कि क्या वह सुखी हैं तो उनका जवाब न में ही होगा. अब यदि आप यही प्रश्न धनिक और विद्वान लोगों के स्थान पर परमात्मा में आसक्ति करने वालों से करेंगे तो शायद आपको अपने प्रश्न का सकारात्मक उत्तर मिल जाए. इतना करने के बाद आपको वास्तविकता का पता लग जाएगा.
भगवान से जोर की आवाज लगाओ
दरअसल यह जो बाहर से दिखने वाले विषय है वही तो दुख का कारण है. तो फिर असली सुख की प्राप्ति कहां होगी. तो क्या किया जाए जो असली सुख मिल सके. स्वामी रामसुख दास जी अपने प्रवचनों में कहते थे कि सुख की तलाश में भटकने के बजाय अपने मन को भगवत चरणों में लगाओ. भगवान का नाम लेते हुए जोर से आवाज लगाओ, हे नाथ हम तो आपको भूल ही गए थे, बस आवाज लगाकर भगवान को याद दिला कर तो देखो, भगवान अपनी कृपा अवश्य ही देंगे और इसके बाद मौज ही मौज रहेगी.