दुर्गा सप्तशती के पहले अध्याय में जानें कैसे अति बलशाली दो असुरों का श्री हरि ने किया वध, देवी ने फैलाया मोह का जाल

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Shashishekhar Tripathi

नवरात्र का पर्व मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की आराधना के लिए है. नौ दिन के नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ अवश्य ही करना चाहिए. दुर्गा सप्तशती की पुस्तक में तेरह अध्याय लिखे गए हैं जिनका पाठ भी करना चाहिए. इन पाठों को नौ दिनों में करने से पुण्य की प्राप्ति होती है इसलिए तेरह अध्यायों को नौ दिन में ही पढ़ने का नियम बनाया जाता है. कुछ लोग शुरू में ही अतिरिक्त पाठों को कर लेते हैं जबकि कुछ लोग अंतिम दिनों में रोज दो दो पाठ कर पूर्णता करते हैं. यह कार्य भक्त अपनी सुविधा से कर सकते हैं. 

राजा सुरथ और व्यापारी समाधि का मिलन

पहले अध्याय में मेधा ऋषि ने महाबलशाली मधु और कैटभ दैत्यों के संहार का प्रसंग एक राजा और व्यापारी को सुनाया. संक्षिप्त कथा के अनुसार चैत्र वंश में जन्मे राजा सुरथ का पूरे भूमंडल पर अधिकार था, किंतु एक बार शत्रुओं से युद्ध में वे हार गए. राजा को कमजोर जान उनके मंत्रियों ने विद्रोह कर सेना और खजाने पर कब्जा कर लिया. दुखी राजा जंगल में मेधा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और उनकी अनुमति से वहीं रहने लगे. कुछ समय के बाद आश्रम में आकर एक व्यापारी समाधि ने भी शरण ली. राजा ने अपना परिचय देते हुए व्यापारी समाधि से आने का कारण पूछा, तो उसने बताया कि उसके घर वालों ने लालच में संपत्ति पर कब्जा कर उसे घर से निकाल दिया. यहां आकर भी मुझे अपने घर वालों की चिंता सता रही है. राजा सुरथ ने विचार किया कि ऐसी ही स्थिति उसकी भी थी. राजा और व्यापारी दोनों ने मिल कर अपनी व्यथा मेधा ऋषि से कही और पूछा कि यह मोह क्यों होता है, इससे छुटकारा कैसे मिल सकता है. 

ऋषि ने दोनों को शांत करते हुए कहा कि मनुष्य और पशु पक्षी सभी सामान वासना से ग्रस्त हैं. समझ होने के बाद भी सारे प्राणी भगवती महामाया के प्रभाव से ही मोह के गहरे गड्ढे में गिरे रहते हैं. भगवती महामाया भगवान विष्णु की योग निद्रा रूप हैं,  जिनसे पूरा जगत मोहित हो रहा है. 

महामाया देवी का प्राकट्य

राजा और व्यापारी द्वारा देवी के बारे में पूछने पर मेधा ऋषि ने कहा वैसे तो वे नित्य एवं अजन्मा हैं लेकिन वे देवताओं का कार्य करने के लिए कई प्रकार से प्रकट होती हैं. एक बार भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर योग निद्रा में लीन थे. तभी उनके कान के मैल से मधु और कैटभ नाम के दो भयंकर असुर पैदा हुए और दोनों ब्रह्मा जी का वध करने को तैयार हो गए. ऐसे में ब्रह्मा जी ने निद्रा देवी की स्तुति कर दोनों असुरों को मोह में डाल कर योग निद्रा में सोए भगवान विष्णु को जगाने का आह्वान किया. इस आह्वान पर तमोगुणों की अधिष्ठात्री देवी विष्णु जी को जगाने के लिए ब्रह्मा जी के सामने खड़ी हो गयीं. 

मधु और कैटभ असुरों का अंत

जागने पर भगवान विष्णु ने दोनों असुरों को देखा कि दोनों ही ब्रह्मा जी को खा जाने को उतावले हो रहे थे. कहते हैं तब भगवान श्री हरि ने मधु और कैटभ असुरों से पांच हजार सालों तक बाहु युद्ध किया. इधर देवी महामाया ने भी उन्हें मोह में भ्रमित कर दिया तो दोनों श्री हरि से बोले, हम तुम्हारी वीरता से प्रसन्न हैं इसलिए तुम कोई वर मांगों. श्री हरि ने कहा तुम प्रसन्न हो तो मेरे हाथों से मर जाओ. दोनों ने चारो तरफ जल ही जल देखा तो बोले जहां पृथ्वी जल में डूबी हुई न हो, और सूखा स्थान हो वहां पर हमारा वध करो. इस पर भगवान ने दोनों के मस्तक अपनी जांघ पर रख कर चक्र से काट डाले. 

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