Shashishekhar Tripathi
मां दुर्गा के नौ स्वरूपों में पहला स्वरूप मां शैलपुत्री का है. इनका यह नाम पर्वतराज हिमालय के यहां बेटी के रूप में जन्म लेने के कारण पड़ा. वाहन के रूप में ये वृषभ की सवारी करती हैं इसलिए इनका एक नाम वृषारूढ़ा भी है. मां शैलपुत्री असुरों का संहार करने के लिए अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल तो बाएं हाथ में कमल का फूल लिए हुए हैं. नवरात्र के पहले दिन देवी के इसी रूप के पूजन का विधान है.
मां के पूर्व जन्म की कथा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार देवी शैलपुत्री के पूर्व जन्म का नाम सती था, जो भगवान शंकर की पत्नी और दक्ष प्रजापति की बेटी थी. प्रजापति दामाद होने के बाद भी भगवान शंकर को पसंद नहीं करते थे, इसलिए उन्होंने एक यज्ञ आयोजित किया जिसमें सभी देवताओं को पत्नियों सहित बुलाया किंतु जानबूझ कर शंकर जी को निमंत्रण नहीं भेजा. पिता के घर यज्ञ की सूचना मिली तो सती ने वहां जाने के लिए महादेव से अनुमति मांगी. उन्होंने समझाया कि वैसे तो पिता के यहां बिना बुलाए भी जाया जा सकता है किंतु अब स्थितियां अलग हैं जिसके चलते उन्हें नहीं जाना चाहिए. वो जिद्द कर पहुंचीं तो वहां पर केवल माँ ने ही प्रसन्नता व्यक्त की, बाकी सभी से उपेक्षा मिली. उनके पिता दक्ष प्रजापति ने तो शिव जी का घोर अपमान करते हुए उनके लिए अशिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जिससे वह विचलित हो गयी और योगाग्नि में जल कर भस्म हो गयीं. अगले जन्म में वो पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री या पार्वती कहलाईं. इस जन्म में इन्होंने घोर तप कर फिर से शिव जी को पति के रूप में प्राप्त किया.
मां के इस स्वरूप के पूजन का मर्म
मां के इस स्वरूप के पूजन के मर्म को समझने के लिए सबसे पहले उनके नाम का अर्थ समझना होगा. शैल शब्द का अर्थ है शिखर यानी चेतना का सर्वोच्च स्थान. सिद्ध योगी ही इस बात को समझ पाते हैं जब ध्यान और योगाभ्यास करते हुए व्यक्ति ऊर्जा के सबसे ऊंचे स्तर तक पहुंचता है. शिखर का अर्थ है भावनाओं के शिखर से भी है क्योंकि भावनाओं के शिखर यानी सर्वोच्चता तक पहुंचने पर दिव्य चेतना की अनुभूति होती है.