एक बार की बात है किसी नगर में देवराज नाम का एक ब्राह्मण रहता था जो वैदिक धर्म से बिल्कुल ही विमुख था. जीवन में किसी भी नियम का पालन न करने वाला और महिलाओं पर गलत दृष्टि भी रखता था. या यूं कहा जाए कि उसने कोई भी अच्छा कार्य नहीं किया था यहां तक कि दूसरों को मारकर उनका पैसा हड़प कर जाता और और उसी से अपना जीवन यापन भी करता था. वह घूमते घूमते वर्तमान प्रयागराज के झूसी अर्थात प्रतिष्ठानपुर में पहुंचा. वहां के एक शिव मंदिर में बहुत से साधु महात्मा एकत्र थे, देवराज भी उन्हीं के बीच में ठहर गया. वहीं पर उसे तेज बुखार आने लगा जहां एक कथा वाचक शिव पुराण की कथा सुना रहे थे तो वहां रुकते हुए मजबूरी में वह भी कथा सुनता रहा. एक महीने तक शिव पुराण की कथा सुनते सुनते बुखार में ही वह चल बसा.
देवराज की मृत्यु के बाद यमराज के दूत आए और उसे रस्सी से बांध कर यमपुरी में ले गए. इसी बीच शिवलोक से भगवान शिव के पार्षद गण हाथों में त्रिशूल लेकर पहुंच गए. उनके पूरे शरीर में भस्म लगी थी और गलों में रुद्राक्ष की माला विराजमान थी. उन्होंने यमपुरी में पहुंचते ही यमदूतों के साथ मारपीट और डरा धमका कर देवराज को यमदूतों के चंगुल से छुड़ा लिया. इसके बाद वह लोग जिस अद्भुत विमान से वहां पहुंचे थे उसी पर देवराज को पूरे सम्मान से बिठाया और कैलास जाने को तैयार हुए. यमदूतों के साथ मारा पीटी और धमकी के चक्कर में यमपुरी में मजे का कोलाहल होने लगा जिसे सुनकर धर्मराज यमराज अपने भवन से बाहर आए और शिव जी के पार्षद गणों को देख कर सारा मामला समझ गए. उन्होंने दिव्यदृष्टि से पूरा घटनाक्रम जान लिया और शिवलोक से आए हुए चारो दूतों का विधि विधान से पूजन अर्चन किया लेकिन पार्षद गणों से कुछ भी नहीं पूछा. उन्होंने अपने दूतों को इशारे से रोक कर देवराज को शिव गणों के साथ जाने दिया, शिव गणों ने सीधे भगवान शिव को उसे समर्पित कर दिया. ऋषि शौनक ने शिव महिमा का यह प्रसंग सुनाते हुए सूत जी से कहा कि जो शिव जी की आराधना करने वाले व्यक्ति को तो उनकी कृपा मिलती ही है, जो शिव जी की कथा सुनता है उसे भी वही फल प्राप्त होता है.