आज भी इस क्षेत्र की असुरों से रक्षा करती हैं मां चामुण्डा देवी, जाने इसके पीछे की पूरी कहानी

0
297

देवी के इस स्वरूप ने पौराणिक काल में दो महाबलशाली असुरों का वध किया था. इस मंदिर का उल्लेख मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य में भी है और आदि गुरु शंकराचार्य ने जिन 18 शक्तिपीठों के बारे में कहा, उन्हीं में से एक है दक्षिण भारत का यह विश्व विख्यात मंदिर. कर्नाटक राज्य में मैसूर से लगभग 13 किलोमीटर की दूरी पर चामुंडी पहाड़ी पर स्थित मां चामुंडेश्वरी मंदिर को राज्य का संरक्षक माना जाता है और इसलिए वहां के लोग कन्नड़ में नाडा अर्थात राज्य की देवी कहते हैं. यहां मां की शक्ति को उग्र रूप में दिखाया गया है.

इसलिए रखा गया नाम 
माना जाता है महिषासुर नाम के असुर का आतंक इतना बढ़ गया कि पृथ्वी लोक ही नहीं देवता भी उससे घबराने लगे जिस पर देवी दुर्गा ने उसके संहार के लिए चामुंडेश्वरी का स्वरूप रखा. मां ने महिषासुर के साथ चामुंडा पहाड़ी की चोटी पर युद्ध में उसका वध कर पूरे क्षेत्र को उसके आतंक से मुक्त कराया. चामुंडा पहाड़ी पर असुर का वध करने के कारण ही उनका नाम चामुंडेश्वरी या महिषासुर मर्दिनी पड़ा. इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में भी देखा जाता है. प्राचीन काल में इस स्थान को क्रौंच पीठ के रूप में जाना जाता था. मान्यता है कि माता सती के बाल यहीं पर गिरे थे. समझा जाता है कि 12 वीं शताब्दी में होयसला राजवंश शासकों ने इस मंदिर को सबसे पहले बनवाया था. विजयनगर साम्राज्य के काल में इसकी मीनारें बनाई गयी.  

भव्य समारोह के साथ निकलती है मां की पालकी
नवरात्र खास तौर पर शारदीय नवरात्र में यहां पर भव्य मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु मां के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. नवरात्र के प्रत्येक दिन मां के नौ रूप दर्शाने के लिए रोज अलग-अलग तरह से श्रृंगार किया जाता है. आषाढ़ महीने कृष्ण सप्तमी को चामुंडा जयंती का पर्व मनाया जाता है, जिस दिन मां की मूर्ति को पालकी में विराजमान कर आसपास घुमाया जाता है. यह भी मान्यता है कि शुक्रवार के दिन मां के दर्शन पूजा करने से मनोकामना पूरी होती है इसलिए इस दिन खासी भीड़ रहती है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here