Ekadashi Vrat: उत्पन्ना एकादशी को उत्पत्ति एकादशी भी कहा जाता है. धर्म शास्त्रों में इस व्रत का इतना महत्व बताया गया है कि इसे करने वाले व्यक्ति के जीवन के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवान विष्णु के साथ ही मां लक्ष्मी की कृपा भी मिलती है. मृत्यु के बाद उसे बैकुंठ धाम प्राप्त होता है. एकादशी के समान पापनाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है. यह व्रत मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है, एकादशी का उत्पत्ति इसी दिन होने के कारण इसे उत्पन्ना या उत्पत्ति एकादशी कहा जाता है. इस वर्ष यह तिथि 26 नवंबर को पड़ रही है.
इस तरह करें उत्पन्ना एकादशी की पूजा
उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने वालों को उस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ सुथरे वस्त्र धारण करने चाहिए. व्रत का संकल्प लेने के साथ ही एक साफ चौकी पर कपड़ा बिछा कर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र लगाना चाहिए. फिर विष्णु जी को चंदन, अक्षत, पीले फूल, फल, धूप, दीप, व मिष्ठान्न अर्पित करना चाहिए. दूध, दही, घी, शहद और चीनी से तैयार पंचामृत अर्पित करें. विष्णु जी को तुलसी दल अति प्रिय है इसलिए पंचामृत में तुलसी दल जरूर डालें. इसके बाद कथा का पाठ कर आरती करें और फिर भोग प्रसाद परिवार के साथ ही पास पड़ोस में भी वितरित करें.
उत्पन्न एकादशी की कथा
एक बार राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से एकादशी तिथि की उत्पत्ति और महत्व के बारे में प्रश्न किया. उन्होंने कहा सतयुग में मुर नामक दानव रहता था, जो सभी देवताओं के लिए भयंकर था. उसने इंद्र को जीतकर स्वर्ग से निकाल दिया. तब इन्द्र अन्य देवताओं के साथ भगवान शिव के पास पहुंचे और सारा हाल सुनाया. महादेव ने कहा, देवराज तुम लोग भगवान गरुड़ध्वज के पास जाओ वही जगत के स्वामी हैं और तुम लोगों की भी रक्षा करेंगे. सब देवता इंद्र सहित क्षीरसागर पहुंचे जहां भगवान गदाधर सो रहे है. सबने हाथ जोड़ कर उनकी स्तुति कर निवेदन किया कि महाबली मुर नाम के असुर ने हम सबको स्वर्ग से निकाल दिया है, अब आपकी शरण में आए हैं, कृपया हमारा उद्धार करिए.
भगवान विष्णु ने उस असुर के बारे में पूछा तो इंद्र ने विस्तार से बताया कि ब्रह्मा जी के वंश में तालजंघ नामक असुर पैदा हुआ था, मुर उसी का पुत्र है. वह महापराक्रमी है और चन्द्रावती नाम की नगरी में रहता है. यहां तक इंद्र के सिंहासन पर किसी और को बैठाने के साथ अग्नि, चंद्रमा, सूर्य, वायु तथा वरुण भी दूसरे बना लिए हैं. इंद्र की बात सुनते ही क्रोधित विष्णु जी ने देवताओं को लेकर चन्द्रावती में प्रवेश कर ललकारा तो दैत्यराज ने गर्जना की. जिसे सुन देवता दसो दिशाओं में भाग खड़े हुए. यहां तक कि उसने विष्णु जी को भी अपने स्थान पर खड़ा रहने के लिए कहा. उसकी ललकार सुन भगवान के नेत्र क्रोध से लाल हो गए. उन्होंने दिव्य बाणों से दानवों को मारना शुरू किया. इसके बाद सेना पर चक्र से प्रहार किया तो सैकड़ों योद्धा मारे गए. मुर असुर डर कर छिप गया तो सिंहावती नाम की गुफा में सोने चले गए.
इधर मुर दानव भगवान को मारने के लिए गुफा में घुसा और सोते देख प्रसन्न हुआ कि अब इसे मारना आसान होगा. उसी समय उनके शरीर से एक कन्या प्रकट हुई जो रूपवान होने के साथ ही दिव्य शस्त्रों से लैस थी. कन्या मुर दानव से युद्ध करने लगी और महाबली असुर उसकी हुंकार से ही राख के ढेर में बदल गया.
इसी बीच विष्णु जी भी जाग गए और पूछा यह तो मेरा शत्रु था, किसने उसका वध किया. कन्या बोली, आपके आशीर्वाद से ही मैंने इसको मारा है. इस पर भगवान ने उसे मनोवांछित फल मांगने को कहा. वह कन्या साक्षात एकादशी ही थी. इस पर उसने हर तरह की समस्याओं का नाश कर सभी तरह की सिद्धि देने वाली देवी होने का आशीर्वाद दीजिए. जो लोग आपके प्रति भक्ति रखते हुए मेरे दिन उपवास करें, उन्हें हर तरह की सिद्धि प्राप्त होने के साथ आप धन, धर्म और मोक्ष प्रदान करें. विष्णु जी बोले, ऐसा ही होगा.