माता लक्ष्मी के आठ रूपों को समर्पित तमिलनाडु के चेन्नई में स्थित इस अष्टलक्ष्मी मंदिर को दक्षिण भारत के प्रमुख मंदिरों में माना जाता है. माता लक्ष्मी के इस स्वरूप की आराधना करने से धन के आठ स्वरूप यानी संतान, सफलता, समृद्धि, धन, साहस, बहादुरी, भोजन और ज्ञान की प्राप्ति होती है. इस मंदिर की एक और खासियत है कि यहां के गर्भगृहों को कई लेवल पर इस तरह से बनाया गया है कि श्रद्धालु किसी भी गर्भगृह में कदम रखे बिना सभी मंदिरों का दर्शन लाभ प्राप्त कर सकता है. शौर्य, शक्ति और धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करने के लिए लोग इस मंदिर में दूर-दूर से आते हैं. दीपावली के मौके पर तो यहां विशेष भीड़ लगी रहती है क्योंकि हर कोई माता लक्ष्मी की कृपा पाना चाहता है.
मंदिर का निर्माण
इस प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण 1976 में हुआ था जिसकी वास्तुकला देखते ही बनती है. ओइम् के आकार का दिखने वाले इस मंदिर का निर्माण कांची पीठ के शंकराचार्य चंद्रशेखरेन्द्र सरस्वती स्वामीगल की इच्छा पर किया गया. निर्माण कार्य का प्रारम्भ 1974 में मुक्कुर श्रीनिवास वरदाचारी और उनके भक्तों ने कराया और 1976 में मंदिर का निर्माण पूरा होने के बाद 5 अप्रैल को कुंभाभिषेक के साथ किया गया.
मंदिर की विशेषताएं
ओइम् के आकार का मंदिर होने के कारण ही इसे ओंकार क्षेत्र के नाम से जाना जाता है. पूर्व दिशा की ओर मुख करके बनाए गए इस मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व उत्तर दिशा जिसे ईशान कोण कहा जाता है. तीन मंजिला मंदिर भवन को आठ भागों में बनाया गया है जिसके कारण इसे अष्टांग विमान भी कहा जाता है. मंदिर को दक्षिण भारत के उछिकामेरूर, थिरु कोट्टियूर, कांची और मदुरै पेरुमल मंदिरों के समान बनाया गया है. इसके मुख्य देवता भगवान विष्णु और उनकी पत्नी माता लक्ष्मी हैं. माता लक्ष्मी के आठों स्वरूपों को भी दिखाया गया है. मंदिर के भूतल पर विष्णु जी और महालक्ष्मी की खड़ी हुई मूर्तियां हैं. इसी तल पर माता महालक्ष्मी के स्वरूप आदि लक्ष्मी, धन्य लक्ष्मी और थैरिय लक्ष्मी है, पहली मंजिल में गजलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी और विद्या लक्ष्मी विराजमान हैं जबकि सबसे ऊपरी और दूसरी मंजिल पर धनलक्ष्मी की मूर्ति है. मंदिर में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों में से गुरुवायुरप्पन, भगवान गणेश, धन्वंतरि और अंजनेयर भगवान की मूर्तियां भी हैं. मंदिर का जीर्णोद्धार 2012 में करने के साथ ही अष्ट बंधन महाकुंभ अभिषेक किया गया था. मंदिर में कुल 32 कलश बने हैं जिनमें गर्भगृह के ऊपर सोने की परत चढ़ा 5.5 फीट ऊंचा कलश भी शामिल है.