नारद जी का बात को सत्य मान उसे सिद्ध करने के लिए पार्वती जी ने अपने माता-पिता और परिवार जनों से अनुमति ली और जंगल में कठोर तप करने के लिए चल पड़ीं. जंगल में एक उचित स्थान जान कर वह शिव जी का चरणों में अपना ध्यान कर उनका जाप करने लगीं. ऐसा करते हुए उन्हें अभी कुछ समय ही बीता था कि भगवान शंकर के चरणों में उनका प्रेम बढ़ने लगा और वह अपनी सुध बुध धीरे-धीरे भूलने लगीं. एक हजार साल के तप में उन्होंने जंगल के मूल और फल का ही सेवन किया, इसके बाद सौ सालों तक साग खाकर समय बिताया. कुछ दिनों तक केवल जल और हवा का सेवन करने के बाद तप का कठोर चरण शुरू किया.
पार्वती के दूसरे चरण के तप के बाद हुई ब्रह्म वाणी
देवी पार्वती ने कठोर तप के पहले चरण में कुछ दिन तक उपवास रखा और फिर जो जिस बेल के पेड़ के नीचे बैठकर वह शिव जी की आराधना कर रही थी, उस पेड़ के सूखने के बाद टूट कर गिरने वाले बेल पत्रों खाते हुए तीन हजार सालों तक का जीवन बिताया. अब अगले चरण में उन्होंने सूखे पत्ते खाना भी बंद कर दिया जिसके चलते उनका नाम अपर्णा हो गया. तप करते करते उनका शरीर सूखे पत्ते के समान अत्यंत जर्जर हो गया. उनकी इस अवस्था को देख उस घने जंगल में अचानक ब्रह्म वाणी हुई, हे पर्वतराज की कुमारी, सुनो तुम्हारा मनोरथ सफल हुआ, तुम्हारे जैसा तप कभी किसी ने नहीं किया है. अब तुम इस ब्रह्म वाणी को सत्य और निरंतर जानकर अपने हृदय में धारण कर निश्चिंत हो जाओ. अब आज के बाद जब भी तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आए तो तुम अपना हठ छोड़ कर उनके साथ चली जाना. जब तुम्हारी सप्तर्षियों से भेंट हो, तो तुम इस वाणी को सत्य मानना. आकाश से इस तरह की वाणी सुन कर पार्वती जी का मन प्रसन्नता से भर गया और अब वह शिव जी का भजन गाते हुए अपने पिता का इंतजार करने लगीं.
लेख का मर्म
पार्वती जी के तप की इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि साध्य कितना भी कठिन हो वह कभी न कभी मिलता अवश्य है, यह निर्भर इस बात पर करता है कि आपका साधन क्या और आप उसे कैसे अपना रहे हैं. ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग कठिन तो है पर दुर्लभ नहीं.