कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी से दीपावली पर्व का प्रारंभ होता है. त्रयोदशी को धनतेरस या धनत्रयोदशी भी कहा जाता है और इस आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरी तथा धर्मराज यम की आराधना की जाती है. दोनों ही देवताओं के बीच गहरा कनेक्शन है. जहां यम की पूजा अकाल मृत्यु से बचाती है वहीं भगवान धन्वंतरी का पूजन संदेश देता है कि हमें स्वास्थ्य का ध्यान रखना चाहिए नहीं, तो यम भी नहीं बचाएंगे. लेख में जानिए यम की आराधना करने से क्या है लाभ और किस तरह की जा सकती है उनकी पूजा.
अकाल मृत्यु से बचने के लिए करें यह उपाय पौराणिक कथा के अनुसार हेम नामक राजा और उनकी पत्नी ने कई पूजा पाठ और अनुष्ठान कर भगवान को प्रसन्न कर पुत्र की कामना की. ईश्वर की कृपा से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई तो भव्य समारोह किया और लोगों को दान दक्षिणा भी दी. एक ज्योतिषी ने उसकी कुंडली का अध्ययन कर बताया कि राजकुमार की मृत्यु विवाह के चौथे दिन ही हो जाएगी. इस पर राजा ने किसी ऐसे स्थान पर भेज दिया जहां किसी कन्या की परछाई भी न पड़ें लेकिन होनी को कोई नहीं टाल सकता है सो उसका संपर्क उस राज्य की राजकुमारी से हुआ और विवाह कर लिया. विवाह के चौथे ही दिन यमराज के दूत उसे ले जाने लगे तो राजकुमार की पत्नी विलाप करने लगी. उसने दूतों से अपने पति को वापस करने का आग्रह करते हुए अकाल मृत्यु से बचाव का उपाय पूछा. दूत वहां से यमराज के पास गए और उन्हें पूरा घटनाक्रम बताया. इस पर यमराज ने बताया कि मृत्यु अटल है, लेकिन धनतेरस के दिन यानी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन जो व्यक्ति मेरे नाम से दीप प्रज्वलित करेगा वह अकाल मृत्यु से बच सकता है. बताते हैं तभी से हर साल धनतेरस पर यम का दीपक जलाने की परम्परा है.
इस विधि से जलाएं दीपक यम के लिए जलाए जाने वाले दीपक को यम दीपक भी कहा जाता है. धनतेरस के दिन प्रदोष काल में जब परिवार के सभी सदस्य उपस्थित हों, तब यम दीपक जलाना चाहिए. इसके लिए मिट्टी का दीपक लेकर उसमें चार बातियां लगाएं और दीपक को सरसों के तेल से भर दें. अब इस दीपक को घर के बाहर दक्षिण दिशा में जलाने के बाद चारों तरफ घुमा कर उसी स्थान पर रख दें. दक्षिण दिशा में इसलिए रखा जाता है क्योंकि यमराज इस दिशा के स्वामी हैं. ऐसा करने से वे प्रसन्न होते हैं और घर में सुख-शांति तथा आरोग्य प्रदान करते हैं.