दीपावली के दिन मध्य प्रदेश के महालक्ष्मी मंदिर में, मां के दर्शन और पीले चावल चढ़ाने से होती है, घर में धन की वर्षा..

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यूं तो माता लक्ष्मी की पूजा हर कोई हमेशा ही करता है किंतु दीपावली के पर्व पर शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व है. कहते हैं ऐसा करने से आपके घर में धन की कभी कोई कमी नहीं रहती है लेकिन यदि आप दीपावली पर अपने घर में धन की वर्षा कराना चाहते हैं, तो इस मौके पर एक बार आपको मध्य प्रदेश के इस मंदिर में दर्शन करने के लिए जरूर जाना चाहिए. मान्यता है कि इस मंदिर में मां के दर्शन और पीले चावल चढ़ाने से भक्त को मां की भरपूर कृपा मिलती है, शायद यही कारण है कि धन त्रयोदशी से भाई दूज यानी पांच दिनों तक मंदिर में विशेष उत्सव मनाया जाता है. मध्य प्रदेश में अहिल्या बाई होल्कर की नगरी इंदौर के रजवाड़े में स्थित इस मंदिर में देश ही विदेशों में बसे भक्त भी यहां दर्शन पूजा करने के लिए आते हैं. नवरात्र से दीपावली यानी एक माह तक माता का तीन बार शृंगार होता है. दीपावली पर पूरे मंदिर को फूलों से सजाकर  छप्पन भोग लगाया जाता है. 

होल्कर परिवार ने कराया मंदिर का निर्माण

मंदिर का इतिहास करीब 192 साल पुराना है, जिसका निर्माण 1832 में इंदौर के राजा हरि राव होल्कर ने कराया था. होल्कर वंश के लोग आज भी इस मंदिर में नवरात्र, धनतेरस और दीपावली के मौके पर मां के दर्शन करने आते हैं. मंदिर के आसपास के क्षेत्र में दीप जलाकर उत्सव मनाते हैं. राजा के समय से चली आ रही एक प्रथा के अनुसार दीपावली के दिन पूजन के बाद राज्य का खजाना खोला जाता है और स्थानीय लोग उनसे मिल कर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. 

प्राचीन मान्यता को आज भी मानते हैं श्रद्धालु

महालक्ष्मी मंदिर की एक प्राचीन मान्यता है, जिसके अनुसार दीपावली के दिन मां की पूजा कर पीले चावल चढ़ाते हैं, जिससे घर पर धन की बारिश होती है. दरअसल पीले चावल निमंत्रण देने का प्रतीक हैं. दीवाली के दिन  चावलों को चढ़ाकर श्रद्धालु मां को अपने घर आने का निमंत्रण भी देते हैं. कुछ लोग इन पीले चावलों को चढ़ाने के बाद उसका कुछ अंश घर ले जाकर तिजोरी में रख लेते हैं. पीले चावलों से मां महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर पर सुख समृद्धि बनी रहती है. व्यापारी वर्ग बरकत के लिए दुकान में अपने गल्ले में उन चावलों को रखते हैं. यहां से घर लौटने पर माता के सानिध्य के भाव के आधार पर भक्त में कुमकुम से अपने मुख्य द्वार पर पद चिन्ह बनाकर माता का प्रवेश कराते और पूजा करते हैं. 

आग लगने से क्षतिग्रस्त हो चुका मंदिर

स्थानीय लोगों के अनुसार तीन मंजिला मंदिर में 1933 के आसपास किसी कारण से आग लग गयी. आग के कारण मंदिर बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया लेकिन आश्चर्य की बात है, कि मां की प्रतिमा को कोई नुकसान नहीं हुआ. 1942 में मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार कराया गया. होलकर रियासत के दफ्तर में दाखिल होने से पहले अधिकारी, कर्मचारी महालक्ष्मी मंदिर के अंदर जाकर जरूर दर्शन करते थे. मंदिर में माता की प्राचीन 21 इंच की मूर्ति प्रतिष्ठित है, साथ ही भगवान गणेश और रिद्धि-सिद्धि की मूर्ति काले पत्थर की है.

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