Dharma : द्रोणाचार्य ने हस्तिनापुर के राजकुमारों के सामने ऐसा क्या किया कि सब अचम्भे में आ गए, फिर पितामह भीष्म ने कैसे पहचाना 

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आचार्य द्रोण हस्तिनापुर में आकर कृपाचार्य के आवास पर गोपनीय तरीके से रहने लगे।

Dharma : आचार्य द्रोण हस्तिनापुर में आकर कृपाचार्य के आवास पर गोपनीय तरीके से रहने लगे। एक दिन युधिष्ठिर आदि सभी राजकुमार एक मैदान में गेंद खेल रहे थे। गेंद अचानक कुएं में गिर गयी। सभी राजकुमारों ने उस गेंद को कुएं से निकालने की कोशिश की किंतु सफल नहीं हुए तो एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे। तभी देखा उनके पास कमजोर शरीर वाले सांवले रंग के एक ब्राह्मण खड़े थे जिन्हें राजकुमारों ने घेर लिया।

गेंद न निकाल पाने पर राजकुमारों को ललकारा

ब्राह्मण देव ने राजकुमारों को उदास देख मुस्कुराते हुए कहा, राम-राम ! धिक्कार है तुम्हारे क्षत्रिय बल और अस्त्र-शस्त्र को जो तुम लोग कुएं में गिरी एक गेंद को नहीं निकाल सकते। देखो ! मैं तुम्हारी गेंद अपनी इस अंगूठी से निकाल देता हूं लेकिन तुम लोग मेरे भोजन का प्रबंध करो। इतना कहते हुए उन्होंने अपनी अंगूठी कुएं में डाल दी। इस पर युधिष्ठिर ने कहा, भगवन ! आप हमारे गुरु कृपाचार्य की अनुमति लेकर हमेशा के लिए भोजन पा सकते हैं। अब द्रोण ने कहा, देखो, ये एक मुट्ठी सीकें हैं और इन्हें मैंने मंत्रों से अभिमंत्रित कर रखा है। एक सींक से छेद देता हूं और फिर दूसरी सीकों से एक दूसरे को एक दूसरे से छेद कर तुम्हारी गेंद निकाल देता हूं।

किस बात से भीष्म ने द्रोण को पहचाना

द्रोणाचार्य ने अपने कहे के अनुसार ही किया और गेंद बाहर आ गयी तो राजकुमारों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। तभी उन्हें ब्राह्मण देव की अंगूठी की याद आई तो बोले, भगवन ! आप अपनी अंगूठी तो निकालिए। द्रोणाचार्य ने बाण का प्रयोग कर अपनी अंगूठी भी निकाल ली। अब फिर से राजकुमार आश्चर्यचकित रह गए और बोले, हम लोगों ने ऐसी अस्त्र विद्या कभी नहीं देखी, आप कृपा करके अपना परिचय दीजिए और बताएं कि हम लोग आपकी क्या सेवा करें। उन्होंने तुम लोग यह बात भीष्म जी से जाकर कहना तो वो पहचान जाएंगे। राजकुमारों ने नगर में लौट कर भीष्म पितामह से सारी बातें बताई तो उन्हें समझने में देर न लगी कि महारथी द्रोणाचार्य उनके नगर में हैं।

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