Dharma : जिस तरह महाराज धृतराष्ट्र युवराज युधिष्ठिर की बढ़ती लोकप्रियता से ईर्ष्या कर रहे थे, उसी तरह दुर्योधन भी समझ रहा था कि भीमसेन बहुत ही ताकतवर है और अर्जुन को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान तथा उसका अभ्यास विलक्षण है। इन बातों को देख कर वह भी अंदर ही अंदर ईर्ष्या करता था। उसने कर्ण और शकुनि से मिल कर पांडवों को मारने के प्रयास किए किंतु पांडव हर बार बचते रहे और विदुर जी की सलाह पर उन्होंने यह बात जाहिर भी नहीं होने दी।
प्रजा करने लगी युधिष्ठिर को राजा बनाने की मांग
हस्तिनापुर के नागरिक पांडवों के गुणों की भरी सभा में प्रशंसा करने में नहीं चूकते तो चौराहों और चबूतरों की चौपालों में भी उन्हीं का गुणगान किया जाता। यहां तक कहा जाने लगा कि राज्य की बागडोर अब पाण्डु के सबसे बड़े पुत्र युधिष्ठिर को मिलना चाहिए। धृतराष्ट्र को पहले ही नेत्रहीन होने के कारण राज्य नहीं मिला तो अब वे राजा कैसे हो सकते हैं। शांतनुनंदन भीष्म भी बड़े सत्यवादी और प्रतिज्ञा का पालन करने वाले हैं। वे तो पहले भी राज्य अस्वीकार कर चुके हैं तो अब कैसे ग्रहण करेंगे। ऐसे में पाण्डु के पुत्र युधिष्ठिर को ही राजा बनाया जाना चाहिए।
दुर्योधन ने बताए दूरगामी परिणाम
प्रजाजनों के बीच इस तरह की चर्चा सुनकर दुर्योधन जलने लगा। वह क्रोध में भर कर अपने पिता धृतराष्ट्र के पास गया और उनसे कहने लगा, पिताजी, लोग बड़ी बुरी तरह की चर्चा कर रहे हैं। वे पितामह भीष्म और आपको हटा कर युधिष्ठिर को राजा बनाना चाहते हैं। इसमें भीष्म को तो कोई शिकायत नहीं होगी लेकिन हमें अपने लोगों के लिए इससे बहुत बड़ा खतरा दिखाई दे रहा है। पहले ही भूल हो चुकी है कि पाण्डु ने राज्य स्वीकार कर लिया और नेत्रहीन होने के नाते मिला हुआ राज्य भी लेने से इनकार कर दिया। यदि युधिष्ठिर को राज्य मिल गया तो फिर उन्हीं का वंश आगे बढ़ेगा और हम लोगों को उनकी कृपा पर निर्भर रहना पड़ेगा। इससे निकलने का कोई रास्ता तो निकालना ही पड़ेगा।