Dharma : अर्जुन को संसार का श्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के चक्कर में गुरु द्रोण ने एकलव्य से ऐसा क्या मांगा जो उसने तुरंत दे दिया

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अर्जुन को संसार का श्रेष्ठ धनुर्धर बनाने के चक्कर में गुरु द्रोण ने एकलव्य से उसके दाहिने हाथ का अंगूठा मांग लिया।

Dharma : गुरु द्रोण के शिष्य और हस्तिनापुर के राजकुमारों पाण्डवों ने जब देखा कि एक काले कलूटे युवक ने कुशलता से उसके धनुर्विद्या अभ्यास में भोंक कर बाधा पहुंचा रहे कुत्ते का मुंह बिना उसे कोई नुकसान पहुंचाएं सात बाणों से बंद कर दिया,तो उन लोगों ने पूरा किस्सा लौट कर गुरु द्रोणाचार्य को बताया। अर्जुन ने कहा, गुरुदेव ! आपने तो अपने हृदय से लगाकर मुझसे कहा था कि तुमसे बड़ा धरुर्धर संसार में कोई नहीं होगा लेकिन मुझे लगता ही आपका शिष्य एकलव्य तो मुझसे भी आगे निकल गया है। अर्जुन की बात सुनकर कुछ देर द्रोणाचार्य शांत रहे फिर उनके साथ वन को चले। 

एकलव्य ने गुरु द्रोण से पूछा, क्या दूं

जंगल में द्रोणाचार्य ने देखा कि एक बाल बाण पर बाण चला कर अपने लक्ष्य को साध रहा है। शरीर पर बुरी तरह से मैल जमा है लेकिन उससे बेपरवाह है और सामने मिट्टी की उनकी मूर्ति भी बनी है जिस पर फूल चढ़े हैं मानों गुरु के रूप में पूजा की गयी हो। तभी अचानक एकलव्य की नजर आचार्य पर पड़ी तो वह उनके पास आया और दंडवत प्रणाम किया। विधिवत उनका पूजन कर बोला, गुरुवर ! आपका शिष्य एकलव्य आपके सामने उपस्थित है, उसे आज्ञा कीजिए। मेरे पास कोई ऐसी वस्तु भी नहीं है जो मैं आपको दे सकूं। 

द्रोण ने एकलव्य से अंगूठा क्यों मांगा

एकलव्य की ऐसी भक्ति देख वे मन ही मन प्रसन्न तो हुए साथ ही उन्हें अपने प्रिय शिष्य अर्जुन का स्मरण हो आया और लगा कि जो बालक बिना उनके किसी सहयोग के इतना अच्छा धनुर्धर बन सकता है तो यदि उसे प्रशिक्षित कर दिया जाए तो वह संसार का श्रेष्ठ धनुर्धर साबित होगा। उन्होंने सोचा कि वे तो अपने प्रिय शिष्य अर्जुन को संसार का श्रेष्ठ धनुर्धर होने का आशीर्वाद दे चुके हैं। बस यह याद आते ही उन्होंने कहा, हे एकलव्य ! तुम अपने दाहिने हाथ का अंगूठा मुझे दे दो। सत्यवादी एकलव्य अपनी प्रतिज्ञा पर डटा रहा और उसने प्रसन्नता से अपने दाहिने हाथ का अंगूठा एक चाकू से काट कर उन्हें सौंप दिया जबकि वह जानता था कि अब वह कभी भी धनुष की डोरी नहीं चढ़ा सकेगा। उसने बाएं हाथ से अभ्यास जारी तो रखा किंतु अब वह सफाई और फुर्ती नहीं रही।

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