Dharma : युधिष्ठिर के हस्तिनापुर का युवराज बनते ही जहां एक ओर भीम और अर्जुन ने अपने राज्य का विस्तार भी कर लिया। दूसरे राज्यों को शामिल करने के साथ ही उनका धन-वैभव भी हस्तिनापुर के अधीन हो गया जिससे दूर देशों तक पांडवों की प्रसिद्धि पहुंची और राजा उनकी ओर आकर्षित होने लगे।
महाराजा को होने लगी ईर्ष्या
हस्तिनापुर की चकाचौंध और पांडवों की बढ़ती हुई प्रसिद्धि को देख महाराज धृतराष्ट्र के मन में बुरे भाव आने लगे और इसके कारण वे चिंतित रहने लगे। दिन पर दिन उनकी आतुरता बढ़ती जा रही थी। ऐसे में उन्होंने अपने सबसे होशियार और राजनीति में निपुण मंत्री कणिक को बुलाया और अपने मन की बात बतायी। उन्होंने पूछा कि पांडवों को प्रसिद्धि को देख कर मुझे उनसे ईर्ष्या हो रही है। अब तुम सारी स्थितियों पर विचार कर सुझाव दो कि मुझे उनसे साथ मुझे संबंध मजबूत करने चाहिए या दूरी बढ़ानी चाहिए। तुम मुझे जो भी सुझाव दोगे, मैं उसे ही मानूंगा।
शत्रु का समापन ही राजनीति का मूल मंत्र
महाराज की बात ध्यान से सुनने के बाद कणिक बोला, राजन ! आप मेरी बात सुन कर मुझसे नाराज न हों। राजा को हमेशा दंड देने के लिए तैयार रहना चाहिए और भगवान के भरोसे न छोड़ कर खुद भी पौरुष का प्रदर्शन करना चाहिए। अपने में किसी तरह की कमजोरी नहीं आने देना चाहिए और यदि हो भी तो उसे प्रदर्शित नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही दूसरे की कमजोरी जानते रहना चाहिए। शत्रु को कमजोर समझ कर कभी भी आंख नहीं बंद करना चाहिए और यदि समय अनुकूल न हो तो उसकी ओर से आंख-कान बंद-बंद करने के बाद भी सावधान रहना चाहिए। साम, दान, दंड और भेद आदि किसी भी उपाय से शत्रु को समाप्त कर देना ही राजनीति का मूल मंत्र है।
मंत्री ने सुनायी चार जंगली जानवरों की कहानी
राजा धृतराष्ट्र ने साम, दान, दंड और भेद का विस्तार करने को कहा तो कणिक ने एक कहानी सुनाते हुए कहा कि कमजोर होने के बाद भी एक जंगल में चालाक गीदड़ रहता था। उसकी बाघ, चूहा,भेड़िया और नेवला से दोस्ती थी। सबने मिल कर एक हिरन को मार गिराया और गीदड़ ने सबसे कहा कि तुम लोग नहा कर आओ तब तक मैं इसकी रखवाली करता हूं फिर सब मिल कर खाएंगे। गीदड़ को कुछ परेशान देख बाघ ने पूछा तुम किस उधेड़बुन में पड़े हो आओ हम लोग इसे खाकर मौज करें। उसने कहा, बाघ भाई चूहा कह रहा था कि बाघ की ताकत को धिक्कार है, हिरन को तो मैने कुतरा था अब यह बाघ मेरी कमाई खाएगा, उसकी इस तरह की घमंड भरी बात सुनकर अब मैं तो हिरन को नहीं खाऊंगा। यदि ऐसा है तो अब मैं अकेले ही शिकार कर खाया करूंगा और वह वहां से चला गया। चूहे के आने पर उसने नेवले के बारे में कहा कि वह कह रहा था कि इसे बाघ के काटने से जहर मिल गया है इसलिए मैं तो खाऊंगा नहीं। इतना सुनते ही चूहा अपने बिल में घुस गया। दो लोगों को वापस भेजा ही था कि भेड़िया आया तो उससे कहा कि आज बाघ तुमसे नाराज है, मुझे तो डर लग रहा है क्योंकि अब वह बाघिन के साथ यहां आएगा। इतना सुनते ही भेड़िया भी भाग निकला। अब नेवला आया तो उससे कहा मैंने लड़ कर बाघ, भेड़िया और चूहे को तो भगा दिया है अब तुम्हें कुछ घमंड हो तो मुझसे लड़ो और हिरन का मांस खाओ। नेवला बोला, जब सब हार गए तो मैं तुमसे कैसे लड़ सकता हूं और वह भी चला गया तो गीदड़ ने चतुराई से अकेले ही हिरन का मांस खा डाला।
राजा को दिया मूल मंत्र
कणिक ने कहा, राजन ! चतुर राजा को भी ऐसा ही करना चाहिए, डरपोक को भयभीत कर दे, ताकतवर से हाथ जोड़ ले, लालची को कुछ दे दे और बराबर तथा कमजोर के सामने अपनी ताकत का प्रदर्शन कर वश में कर लेना चाहिए। शत्रु चाहे कोई भी हो, उसे मार डालना चाहिए। मन में दुश्मनी रखने पर भी मिलने पर मुस्कुराकर बात करना चाहिए।