दक्षिण भारत के तमिलनाडु में यूं तो छोटे-बड़े 108 पवित्र वैष्णव मंदिर हैं, जिनमें त्रिची जिले में श्रीरंगम में में सबसे प्रमुख वैष्णव मंदिर है श्री रंगनाथ स्वामी मंदिर जिसकी ख्याति पूरे विश्व में है. इस मंदिर को भूलोक का वैकुंठ धाम माना जाता है. कुछ लोग इस मंदिर को तिरुवरंगम तिरुपति, पेरियाकोइल के नाम से भी जानते हैं. मंदिर में श्री रंगनाथ के साथ ही मां लक्ष्मी की मूर्ति भी है, जिन्हें यहां पर श्री रंगनायकी कहा जाता है.
मंदिर स्थापना की रोचक कहानी
इस विश्व विख्यात मंदिर की कहानी बहुत ही रोचक और प्रेरणाप्रद है. श्री रंग महात्म्य के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार होने के बाद भी भगवान श्री राम ने कावेरी के तट पर श्री रंगम में भगवान विष्णु की मूर्ति की पूजा की थी. यह मूर्ति विभीषण ने उन्हें दी थी, जो अपने साथ लाया था. लंका विजय और माता सीता को पाने के साथ ही श्री राम ने विभीषण को लंकाधिपति बनाया तो वह इस स्थान पर रुका और मूर्ति की नियमित पूजा कर साथ ले जाने लगा. लेकिन यह क्या मूर्ति तो अपने स्थान से हिली भी नहीं. उसी समय भगवान विष्णु प्रकट हुए और कहा कि वे रंगनाथस्वामी के रूप में यहीं श्रीरंगम में रहना चाहते हैं और विभीषण को आश्वस्त किया कि उनकी दिव्य दृष्टि लंका पर बनी रहेगी इसलिए श्री रंगनाथ की मूर्ति दक्षिण की ओर मुख करके रख दी गई. तमिल महाकाव्य सिलापथिकरम में भगवान विष्णु को कावेरी नदी के तट पर लेटे हुए दर्शाया गया है जिन्हें श्रीरंगम के रंगनाथस्वामी के बताया गया है. मंदिर के अंदर चोलन शिलालेखों के साथ ही साथ ही पांड्य, होयसल और विजयनगर साम्राज्य के शिलालेख भी हैं जिन्होंने तिरुचिरापल्ली त्रिची में क्रम अनुसार शासन किया. 3 नवम्बर, 2017 को इस मंदिर का बड़े पैमाने पर पुनर्निर्माण करने के बाद सांस्कृतिक विरासत संरक्षण के लिए यूनेस्को एशिया प्रशांत पुरस्कार 2017 दिया गया.
मंदिर की वास्तुकला
मंदिर की वास्तुकला द्रविड़ियन है, जिसका उल्लेख संगम युग सौवीं ईस्वी से 250 वीं ईस्वी के तमिल साहित्य पांच महाकाव्यों में से एक शिलप्पादिकारम में मिलता है. पुरातात्विक शिलालेख 10 वीं शताब्दी के हैं. परिसर का क्षेत्रफल लगभग 156 एकड़ है जो सात अनुभागों और 21 गोपुरमों से मिलकर बना है. मुख्य गोपुरम अर्तात मुख्य द्वार 72 मीटर ऊंचा है जिसे राजगोपुरम कहा जाता है. अन्य आकर्षण के रूप में 1000 ग्रेनाइट के खंभों वाला हाल है जिनमें जंगली पशुओं के चित्र बने हैं, इनके अलावा गरुड़ और शेष मंडप भी हैं.
ब्रह्मोत्सव में रथ पर निकल, देवता देते है दर्शन
ब्रह्मोत्सव यहां का प्रमुख त्योहार माना जाता है जिसमें मंदिर के देवताओं को रथ पर सजा कर जनता के दर्शन करने के लिए भ्रमण कराया जाता है. यूं तो यह पर्व पूरे पौष मास में धूमधाम से मनाया जाता है किंतु पौष पूर्णिमा के दिन मुख्य आयोजन होता है.