राक्षस तो बहुत हुए, फिर विजयादशमी पर ही क्यों फूंका जाता है रावण का पुतला.. जानें इसके पीछे का कारण

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आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को विजयादशमी का पर्व मनाया जाता है. इस दिन गांव कस्बों से लेकर महानगरों ही नहीं विदेशों में भी धूमधाम से रामलीला का मंचन करने के बाद रावण का पुतला दहन किया जाता है. दशहरा के इस पर्व को के त्योहार को बुराई पर अच्छाई की और अंधकार पर रोशनी के जीत के प्रतीक के रूप में देखा जाता है. माना जाता है कि इसी दिन प्रभु श्री राम ने लंकापति रावण का वध किया था. हालांकि इसी दिन महिषासुर जैसे बलशाली असुर का भी वध हुआ जिसके आतंक से मनुष्य ही नहीं देवता भी भयभीत हो गए थे, तब भगवानों के तेज से उत्पन्न हुई देवी ने उस असुर का संहार किया, जिससे देवी को  महिषासुर मर्दिनी का नाम मिला.

लंकापति का नाम रावण किसने रखा
लंकाधिपति भगवान शंकर का परम भक्त था. उसे लगा कि भगवान शिव के दर्शन के लिए उसे  लंका से कैलाश पर्वत तक आना पड़ता है इसलिए यदि कैलाश पर्वत ही लंका में स्थापित कर दूं तो नित्य दर्शन का लाभ मिलता रहेगा. बस इसी बात पर उसने कैलाश पर्वत को उखाड़ने की चेष्टा की लेकिन यह क्या, भोलेनाथ ने अपने अंगूठे का जोर लगाया तो वह हिला भी नहीं सका. हाथ दबने से हुई पीड़ा पर उसके मुख से इतनी जोर की आवाज निकली कि तीनों लोक कांपने लगे. मंत्रियों की सलाह पर लंकापति ने शिव जी आराधना शुरु की, हजारों वर्ष की तपस्या पर महादेव प्रसन्न हो प्रकट हुए और उसे पीड़ा से मुक्ति प्रदान की. शिव जी ने ही दशानन को पहली बार रावण के नाम से संबोधित किया. दरअसल राव भयानक आर्तनाद को कहते हैं, जो दशानन ने किया था.

अहंकार का प्रतीक है रावण 
महाज्ञानी, बलशाली रावण अपने समय का संसार का अप्रतिम योद्धा था, देवता भी उससे डरते थे. वेदों और उपनिषदों का इतना बड़ा ज्ञाता की मृत्यु के समय श्री राम ने अपने भाई लक्ष्मण को उसके पास राजनीति की शिक्षा लेने के लिए भेजा था. वह जितना बड़ा विद्वान था, उतना ही बड़ा अहंकारी भी था. अहंकार और क्रोध के चलते वह अपने पुत्र, पत्नी, भाई और मंत्रियों की सलाह भी नहीं मानता था. यही कारण था कि वह स्वयं ही गलती करता रहा जिसके कारण उसका पूरे कुल के साथ अंत हुआ. रावण को बुराई का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है इसलिए दशहरा के दिन प्रभु श्री राम द्वारा उसका वध करने पर पुतला फूंक कर उत्सव मनाया जाता है. वास्तव में पुतला फूंक कर समाज को संदेश दिया जाता है कि अहंकार और क्रोध का अंत इसी तरह होता है. 

यहां के लोग रावण को दामाद मान करते हैं सम्मान 
रावण की पटरानी मंदोदरी थी, जो मध्य प्रदेश के मंदसौर की रहने वाली थी. यही कारण है कि जहां एक ओर पूरे देश में विजयादशमी के दिन रावण का पुतला फूंका जाता है वहीं मंदसौर में रावण की पूजा अर्चना की जाती है. दरअसल वहां के लोग रावण को दामाद मानते हैं और उसी रूप में सम्मान देते हैं. इसी तरह मध्यप्रदेश के ही विदिशा जिले के एक गांव का नाम ही रावण है. इस गांव के कान्यकुब्ज ब्राह्मण अपने को रावण का वंशज मानते हैं.

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