श्री राम की परीक्षा लेने के नाम पर देवताओं के संग उनके भव्य व दिव्य दर्शन करने के बाद दक्ष कुमारी सती जी उनके सामने नतमस्तक हो गयी और चरणों में सिर नवाकर वहां से शिव जी के पास चल पड़ीं. शिव जी ने उन्हें देखते ही हंसकर पूछा, क्या हुआ तुमने रामजी की कैसे परीक्षा ली और तुम्हारी परीक्षा में वे खरे उतरे कि नहीं, पूरी बात सच-सच और विस्तार के साथ बताओ. लेकिन श्री राम के प्रभाव को देख सती जी तो डर ही गयी थीं सो उन्होंने पूरी बात छिपाने का प्रयास किया और झूठ ही कहा, स्वामी मैने कोई परीक्षा ही नहीं ली बस उन्हें देख कर आपकी तरह ही प्रणाम किया. क्योंकि मुझे इस बात का पूरा विश्वास है कि आपका कहा झूठ हो ही नहीं सकता है.
दुविधा में पड़े भगवान शंकर
शिव जी ने ध्यान किया तो उन्हें कुछ ही समय पहले माता सती और श्री राम का सारा घटनाक्रम स्क्रीन के रिप्ले की तरह दिखने लगा. सब कुछ जानने के बाद उन्होंने श्री राम की माया के प्रति सिर नवाया सोचने लगे कि प्रभु की माया अपरंपार है, जिसने सती से झूठ भी बुलवा दिया. उन्हें यह समझने में क्षण भर की भी देरी नहीं लगी कि हरि की इच्छा रूपी भावी बहुत प्रबल है. लेकिन शंकर जो को इस बात से घोर कष्ट हुआ कि सती ने सीताजी का वेश धारण किया. बस उनका हृदय इस बात को लेकर दुख से भर गया. उन्होंने विचार किया कि इन स्थितियों के बाद भी यदि वे सती जी से प्रीति करते हैं तो उनका भक्तिमार्ग गायब हो जाएगा और इस तरह बहुत बड़ा अन्याय हो जाएगा. उनकी स्थिति तो उस कौर के समान हो गयी जिसे न खाया जाए और न ही निगला जाए. उनके मन में विचार आया कि सती तो परम पवित्र हैं इसलिए इन्हें छोड़ना भी ठीक नहीं है और यदि इनके साथ प्रेम किया तो पाप हो जाएगा क्योंकि वे तो सीता जी का रूप रच चुकी हैं. महादेव से कुछ कहते ही नहीं बना किंतु उनके हृदय में विचारों का द्वंद चलता रहा.
दुविधा को दूर करने को लिया कठिन संकल्प
यह करूं कि वह करूं की वैचारिक दुविधा में फंसे शिव जी ने इसी बीच एक कठिन संकल्प मन ही मन ले लिया. बस उन्होंने अपने ही स्थान से श्री रामचंद्र जी के चरणों में सिर नवाते हुए तय कर लिया कि अब सती के इस शरीर से मेरी पति पत्नी के रूप में भेंट नहीं हो सकती है. बस इस संकल्प को लेने के साथ ही शिव जी अपने धाम कैलाश की ओर चल पड़े. उसी समय आकाशवाणी हुई कि आपकी जय हो क्योंकि आपकी भक्ति बहुत मजबूत है.
लेख का मर्म
यह लेख हमें बताता कि जब कोई व्यक्ति वैचारिक दुविधा में फंसा हो, तो वह कुछ करने की स्थिति में नहीं रहता है. पूरे घटना क्रम को देख कर शिव जी का संकल्प यह बताता है कि श्रद्धालु को प्रभु की भक्ति पूरे समर्पण के साथ करनी चाहिए और उसमें किसी भी तरह का समझौता करना ठीक नहीं, फिर इसके लिए कोई बहुत ही कठोर निर्णय क्यों न लेना पड़े.