जंगल में अपनी पत्नी के वियोग में व्याकुल श्री राम को रोते देख जब भगवान शंकर ने उन्हें सच्चिदानंद भगवान की जय बोलते हुए दूर से प्रणाम किया, तो उनकी दशा देख साथ चल रहीं माता सती अनेकों शंकाओं से घिर गयी. शंका होते हुए भी उन्होंने भगवान से कुछ भी नहीं कहा लेकिन अंतर्यामी भोलेनाथ को उनके मन की दशा समझने में जरा भी देर नहीं लगी.
शंका से घिरा रहा सती का मन
गोस्वामी तुलसीदास श्री रामचरित मानस के बालकांड में लिखते हैं, कि भगवान शंकर ने भवानी को समझाया, कि स्त्री स्वभाव के कारण तुम्हारे मन में शंका आ रही है किंतु ये वही सच्चिदानंद रूप श्री राम हैं जिनकी कथा अगस्त्य मुनि ने सुनाई थी और जिनकी भक्ति मैंने मुनि को बतायी थी. ये वही मेरे ईष्टदेव श्री रघुवीर हैं, जिनकी सेवा ज्ञानी मुनि सदैव करते रहते हैं. उन्होंने आगे कहा कि ज्ञानी, मुनि, योगी और सिद्ध लोग निरन्तर निर्मल चित्त से उन्हीं का ध्यान करते हैं. वेद पुराण और शास्त्र भी उन्हीं के गुणों का बखान करते हैं. ये वही समस्त ब्रह्मांड के नायक, मायापति. नित्य पूज्य श्री राम हैं, जिन्होंने अपने भक्तों का हित करने के लिए स्वयं अपनी इच्छा से रघुकुल में महाराज दशरथ और माता कौशल्या के पुत्र के रूप में जन्म लिया है. इसके बाद भी ये अपनी पत्नी के वियोग में भटक रहे हैं. यह उनकी लीला का हिस्सा है, जिसकी संरचना उन्होंने पहले से कर रखी है.
भ्रम निवारण को महादेव ने रखा परीक्षा का प्रस्ताव
कई उदाहरणों के माध्यम से शिव जी ने सती जी को समझाने की कोशिश की किंतु वो तो भ्रम के ऐसे भंवर जाल में फस चुकी थीं कि उन्हें भगवान शंकर की बातें भी समझ में नहीं आई. महादेव का उपदेश भवानी को बिल्कुल भी नहीं भाया, उन्हें लगा कि यह भी भगवान की माया का ही प्रभाव है, लगता है वह इस बात को लेकर भी कोई लीला ही कर रहे हैं. इस पर महादेव ने मुस्कुराते हुए कहा कि हे भवानी यदि तुम्हारे मन में अभी भी कोई संदेह है, तो उन्हें उसका निवारण करने के लिए स्वयं ही परीक्षा ले लेनी चाहिए.