Chaitra Navratri 2025 : नवरात्रि पूजन की शुरुआत करें कलश स्थापना से, जाने घट स्थापना का शुभ मुहूर्त

0
435
कलश स्थापना के साथ नवरात्रि पूजन प्रारंभ होता है, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी आस्था और संस्कृति का प्रतीक भी है।

Chaitra Navratri 2025 : कलश स्थापना के साथ नवरात्रि पूजन प्रारंभ होता है, जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह परंपरा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी आस्था और संस्कृति का प्रतीक भी है। नवरात्रि के पर्व में श्रद्धा, शक्ति और भक्ति का विशेष महत्व होता है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। इस शुभ अवसर पर कलश स्थापना करना बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। यह न केवल पूजा का प्रारंभिक चरण होता है, बल्कि घर में सकारात्मक ऊर्जा को आमंत्रित करने का माध्यम भी माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है।

चैत्र नवरात्रि 2025- घटस्थापना मुहूर्त (निर्णयसागर पंचांग अनुसार)

चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ 30 मार्च 2025 रविवार के दिन से हो रहा है। इस दिन शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना करना अत्यंत फलदायी होता है।

  • चंचल वेला: सुबह 08:07 से 09:39

  • अमृत वेला: सुबह 09:39 से दोपहर 12:43

  • अभिजित मुहूर्त: दोपहर 12:18 से 01:07

कलश स्थापना का महत्व

कलश स्थापना का अर्थ है देवी शक्ति का आह्वान कर उसे घर में विराजमान करना है। इसे विधिपूर्वक स्थापित करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और नकारात्मक शक्तियां नष्ट होती हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार, कलश के मुख में भगवान विष्णु, कंठ में भगवान रुद्र और मूल में भगवान ब्रह्मा का वास माना जाता है। वहीं, कलश के मध्य में दैवीय मातृ शक्तियों का निवास होता है।

कलश स्थापना के लिए आवश्यक सामग्री

कलश स्थापना के लिए  मिट्टी का कलश, जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र और शुद्ध मिट्टी चाहिए। साथ ही, शुद्ध जल, गंगाजल, मौली (कलावा), इत्र, साबुत सुपारी, दूर्वा, पुष्प और सिक्के भी आवश्यक होते हैं। अशोक या आम के पांच पत्ते, बिना टूटे चावल, लाल कपड़े में लपेटा हुआ नारियल, धूप, दीप, माला और फल भी कलश स्थापना में प्रयोग किए जाते हैं।

कलश स्थापना की विधि

सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें और उसमें शुद्ध मिट्टी की एक परत बिछाकर जौ डालें, फिर ऊपर से मिट्टी की एक और परत डाल दें। अब कलश पर मौली बांधकर उस पर रोली से ॐ और स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। इसके बाद कलश में शुद्ध जल, गंगाजल, सुपारी, दूर्वा, फूल, इत्र और सिक्के डालें। कलश के मुख पर अशोक या आम के पांच पत्ते रखें और ढक्कन से ढक दें। ढक्कन में चावल भरकर, लाल कपड़े में लपेटा हुआ नारियल मौली के साथ बांधकर उस पर रखें। अब इस कलश को जौ के पात्र के बीच में स्थापित करें और देवी-देवताओं का आह्वान कर नौ दिनों तक इसमें विराजमान होने का निवेदन करें। पूजा के अंत में दीप जलाएं, धूप दिखाएं और प्रसाद अर्पित करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here