ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं छठे दिन की देवी कात्यायनी, इस असुर का वध करने को उन्होंने उठाए देवताओं के दिए शस्त्र

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Anjani Nigam

नवरात्र का छठा दिन मां कात्यायनी को समर्पित है. ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार इन्हें ब्रह्मा जी की मानस पुत्री भी माना गया है. मां कात्यायनी के बारे में प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार एक बार असुरों के राजा महिषासुर ने स्वर्ग सहित तीनों लोकों पर आधिपत्य जमा लिया. ऐसे समय में भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शंकर जी ने अपने अपने तेज का अंश देकर एक देवी को उत्पन्न किया. मां भगवती के उपासक महर्षि कात्यायन ने सबसे पहले उन देवी की पूजा की जिसके कारण वे कात्यायनी कहलाईं.  

इस दिन हुआ महिषासुर का वध
महिषासुर के अत्याचार से पृथ्वीलोक के लोग ही नहीं स्वर्ग के देवता भी परेशान हो चुके थे, जिन्होंने तीनों भगवानों से उससे उद्धार के लिए प्रार्थना की थी. देवी कात्यायनी का प्राक्ट्य होने के बाद महर्षि कात्यायन ने सप्तमी, अष्टमी और नवमी तीन दिनों तक उनकी पूजा की और विजया दशमी यानी दशहरा के दिन महिषासुर का युद्ध कर तीनों लोकों के लोगों को शांति प्रदान की. इस बीच देवताओं ने उन्हें विभिन्न प्रकार के दिव्य शस्त्र प्रदान किए जिनका उपयोग कर उन्होंने महिषासुर का वध किया.  

मां की आराधना से पूरे होते कार्य 
शास्त्रों के अनुसार मां कात्यायनी के पूजन से भक्त में अद्भुत शक्ति का संचार होता है, जो उसे शत्रुओं का नाश करने में सक्षम बनाती है. जो भक्त मां दुर्गा के छठे स्वरूप की आराधना करते हैं, मां की कृपा उन पर हमेशा बनी रहती है. मान्यता है कि इनका व्रत और पूजा करने से कुंवारी कन्याओं के विवाह की बाधा दूर होती है. भगवान श्री राम ने लंका में रावण से युद्ध करने के पहले, ब्रज की गोपियों ने श्री कृष्ण को पति के रूप में पाने के लिए और महाभारत के युद्ध के पूर्व भगवान श्री कृष्ण के सुझाव पर अर्जुन ने इनकी आराधना की थी. मां की चार भुजाओं में दाहिनी तरफ का ऊपर का हाथ अभय और नीचे का वरद मुद्रा में है. बाईं और के ऊपर के हाथ में तलवार तो नीचे के हाथ में कमल का पुष्प है. इनका वाहन सिंह है. 

सूक्ष्म जगत की सत्ता का संचालन करतीं मां
अदृश्य और अव्यक्त सूक्ष्म जगत की सत्ता चलाने वाली मां कात्यायनी ही हैं. उनकी दिव्यता अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक है. क्रोध को सामान्य रूप से नकारात्मक ही माना जाता है किंतु ऐसा आवश्यक नहीं है. मां कात्यायनी ने महिषासुर के प्रति अपना क्रोध व्यक्त कर नकारात्मकता को सकारात्मक बल में बदल दिया. गहराई में जाकर अति सूक्ष्मता से देखा जाए तो अज्ञान व अन्याय के प्रति सकारात्मक क्रोध मां कात्यायनी का प्रतीक है. ऐसा कहा जाता है कि ज्ञानी का क्रोध भी हितकर और उपयोगी होता है,जबकि अज्ञानी का प्रेम भी हानिकारक साबित होता है. बड़े भूकंप, बाढ़, प्राकृतिक आपदा आदि की घटनाएं देवी कात्यायनी से संबंधित हैं. वो क्रोध के उस रूप का प्रतीक हैं जो सृष्टि में सृजनता, सत्य और धर्म की स्थापना करती हैं.

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