सृष्टि में प्रजा की उत्पत्ति का श्रेय उन्हीं को जाता है जिन्होंने अपनी पत्नी वीरणी के गर्भ से एक हजार पुत्रों को जन्म दिया किंतु महर्षि नारद ने विचित्र कार्य कर दिया।
Birth of Manu & Yayati : ब्रह्मा जी के दाहिने अंगूठे दक्ष प्रजापति की उत्पत्ति हुई जिन्हें प्राचेतस दक्ष कहा गया। सृष्टि में प्रजा की उत्पत्ति का श्रेय उन्हीं को जाता है जिन्होंने अपनी पत्नी वीरणी के गर्भ से एक हजार पुत्रों को जन्म दिया किंतु महर्षि नारद ने विचित्र कार्य कर दिया। उन्होंने उन पुत्रों को मोक्ष पाने वाले ज्ञान का उपदेश कर उन्हें सांसारिक मोह माया और विषय वासना से विरक्त कर दिया। तब उन्होंने 50 कन्याएं पैदा कीं और उन्होंने उनके पहले पुत्र को अपना बनाने की शर्त पर विवाह किया। यह बात तो सभी जानते हैं कि कश्यप से 13 कन्याओं का विवाह किया था। कश्यप की पत्नी अदिति से इंद्र और विवस्वान आदि कई पुत्र हुए।
मनु से मानव जाति का जन्म
इन्हीं विवस्वान के सबसे बड़े पुत्र थे मनु और सबसे छोटे पुत्र थे यमराज। मनु वास्तव में बहुत ही धर्मात्मा थे और उन्हीं से मानव जाति की उत्पत्ति हुई तथा सूर्यवंश मनुवंश के नाम से कहलाया गया। मनु के यूं तो 60 पुत्र हुए किंतु उनमें 50 तो आपस में लड़ कर खत्म हो गए जबकि बचे हुए हुए 10 पुत्रों में वेन, धृष्णु, नरिष्यन्त, नाभाग, इच्छवाकु, कारुष, शर्याति, इला कन्या, पृषध्र और नाभागारिष्ट। इनमें इला एक ऐसा पुत्र था जिसने पुरुरवा को जन्म दिया और वह पुरुरवा का माता-पिता दोनों ही था।
पुरुरवा को मिला शाप
पुरुरवा बहुत शक्तिशाली था और अपनी शक्ति के बूते समुद्र के 13 द्वीपों का स्वामी बन गया। अपने बल और पौरुष का उसे इतना घमंड हो गया कि उसने ब्राह्मणों को अपमानित ही नहीं किया बल्कि उनका धन और रत्न भी छीन लिए। पुरुरवा द्वारा ब्राह्मणों के अपमान और उनका धन छीनने की जानकारी मिलने पर ब्रह्मलोक से सनत्कुमारों ने आकर उसे बहुत तरह से समझाने का प्रयास किया किंतु उस पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। तब ऋषियों ने क्रोधित होकर उसे शाप दिया जिससे वह नष्ट हो गया।
नहुष का राज्य
इला का यह पुत्र पुरुरवा ही है जो स्वर्ग से तीन प्रकार की अग्नि और उर्वशी अप्सरा को भी उठा लाया था। उर्वशी के गर्भ से उसने आयु, धीमान, अमानसु, दृढ़ायु, वनायु और शतायु नाम के छह पुत्र हुए। सभी के बड़े होने पर विवाह किया गया जिनमें आयु का विवाह स्वर्भानवी के साथ हुआ था। आयु और स्वर्भानवी से नहुष, वृद्धशर्मा, रजि, गय और अनेना नाम के पुत्र हुए जिनमें नहुष सबसे बड़ा था। नहुष बुद्धिमान होने के साथ ही वीर और धर्म के अनुसार आचरण करने वाले थे। नहुष ने धर्म के मार्ग पर चलते हुए बुद्धि व बल के आधार पर महान राज्य स्थापित किया। उनके राज्य की विशेषता थी कि कोई दुखी नहीं था और सब मिल कर रहते थे। यहां तक कि चोरों का भी भय नहीं था।
अभिमान से नहुष का पतन
धर्मा के अनुसार आचरण करते-करते नहुष में अभिमान आ गया और यही उनके पतन का कारण बना। यूं तो उन्होंने तेज तप और बल से देवताओं को भी पराजित करके अपने को इंद्र घोषित कर दिया था किंतु अभिमान के चलते ही उन्होंने ब्राह्मणों से अपनी पालकी ढुलवाई। नहुष के छह पुत्र हुए जिनके नाम यति, ययाति, संयाति, आयाति, अयति और ध्रुव थे। इनमें यति बड़े थे किंतु योग साधना करके वे तो ब्रह्मस्वरूप हो गए जिसके कारण नहुष के दूसरे पुत्र ययाति राजा बने जिन्हें बहुत से यज्ञ किए। बड़ी ही भक्ति के साथ देवताओं और पितरों की उपासना करते हुए प्रजा का पालन किया।