आपने सुना ही नहीं होगा बल्कि कई ऐसे आयोजनों में भाग भी लिया होगा जहां पर श्रेष्ठ कथावाचक पूरे सप्ताह भागवत का पाठ करते हैं. यूं तो भागवत पुराण कोई भी पढ़ सुन सकता है किंतु शास्त्रों में बताया गया है इसका प्राप्ति उन्हीं लोगों को हो पाती है, जिनके पास जन्म जन्मांतर के पुण्यों का संग्रह होता है.
जब राजा परीक्षित को ऋषि ने पीने का पानी नहीं दिया
द्वापर युग के महाभारत काल में पांच पांडवों में श्रेष्ठ धनुर्धर और गुरु द्रोण के प्रिय शिष्य अर्जुन के पौत्र और वीर अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित हस्तिनापुर साम्राज्य के महाराज थे. वह बहुत ही न्यायप्रिय और प्रजापालक थे. एक बार वे जंगल में शिकार खेलने गए तो रास्ते में उन्हें बहुत जोर की प्यास लगी. उन्हें शमीक ऋषि का आश्रम दिखाई दिया जहां शमीक ऋषि मौन धारण कर ध्यान में लीन थे. ध्यानावस्था में कभी किसी को भी टोकना नहीं चाहिए किंतु राजा परीक्षित इस बात को भूल गए. राजा परीक्षित ने ध्यानावस्था में बैठे ऋषि शमीक से पानी मांगा किंतु ध्यान में बैठने के कारण उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया. यह वह समय था, जब कलयुग शुरू होने वाला था जो राजा के मुकुट पर विराजमान था.
श्रृंगी ऋषि ने राजा को कौन सा शाप दिया
पानी मांगने के बाद भी राजा को जल न देने पर राजा रुष्ट हो गए क्योंकि इसे अवहेलना मान उन्होंने अपना अपमान समझा और जंगल से एक मरा हुआ सांप लाकर शमीक ऋषि के गले में डाल दिया. इस बात की जानकारी उनके पुत्र श्रृंगी ऋषि को हुई तो उन्होंने राजा को शाप दिया कि तक्षक नाग के डसने से सात दिनों के भीतर ही उनकी मृत्यु हो जाएगी.
कलयुग में मोक्ष का सबसे बड़ा साधन भागवत पुराण
इस पर राजा परीक्षित को शुकदेव जी महाराज श्रीमद् भागवत की कथा सुनाने के लिए उनकी सभा में पहुंचे. शुकदेव जी ने उन्हें पूरी लगन से कथा सुनाई जिसे सुनकर उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई क्योंकि भागवत कथा सुनने वाले को मृत्यु का भय नहीं रहता है. इस बात की जानकारी पर ब्रह्मा जी को घोर आश्चर्य हुआ. उन्होंने सत्यलोक में मोक्ष के सभी साधनों के एक तराजू में रख कर तौला. देखा कि अन्य साधनों की तोल कम पड़ गयी और भागवत का वजन सबसे भारी रहा. इसे देख कर ऋषियों को भी विस्मय हुआ. उन्होंने निर्णय लिया कि कलियुग में भगवान स्वरूप श्री मद्भागवत शास्त्र को पढ़ने सुनने से ही मोक्ष की प्राप्ति होगी. बाद में ब्रह्मा जी के चार मानस पुत्रों सनक, सनन्दन, सनातन और सनत्कुमार जिन्हें सनकादि ऋषि भी कहा जाता है. इन चारों ने मिल कर श्रीमद्भागवत पुराण की कथा को सात दिनों के भीतर सुनाने और सुनने की प्रथा बनायी. इतना ही नहीं उन्होंने इसे सात दिनों के भीतर सबसे पहले देवर्षि नारद को सुनाया हालांकि देवर्षि ने इसके पहले ही भागवत कथा को ब्रह्मा जी से सुन लिया था. बस तभी से सात दिनों में भागवत पारायण होने लगा.