भैया दूज के साथ, यमराज के अकाउंटेंट चित्रगुप्त का भी होता है इस दिन पूजन..जाने क्या है इसके पीछे की कहानी

0
450

दीपावली के साथ ही भाई-बहन के पावन प्रेम के प्रतीक भाई द्वितीया का अपना विशेष महत्व है. भैया दूज मनाने के साथ पंचदिवसीय दीपावली पर्व की पूर्णता होती है. बहने इस दिन भाई की मंगल कामना के साथ उन्हें रोली और अक्षत से टीका करती है. भाई दूज के साथ ही इस दिन चित्रगुप्त की भी पूजन का भी प्रचलन है. वर्ष 2024 में  यह दोनों पर्व 3 नवंबर रविवार के दिन मनाया जाएगा.

ऐसे शुरू हुई, भैया दूज के पर्व की शुरुआत 

भैया दूज भाई बहन के प्यार और स्नेह के रिश्ते का प्रतीक है. शास्त्रों के अनुसार भाई दूज को शुरू करने का श्रेय यमुना जी को जाता है. यमुना जी यमराज की बहन है, यमुना के कई बार घर बुलाने पर जब यमराज अपनी बहन के घर पहुंचे तो वह दिन कार्तिक शुक्ल मास की द्वितीया तिथि थी. बहन ने उनका तिलक लगा कर स्वागत किया और प्रेम पूर्वक भोजन कराया था. तभी से भैया दूज पर्व की शुरुआत हुई.

इस दिन यमुना स्नान से होती है, लंबी उम्र

इस दिन यमुना जी की पूजा और स्नान का बड़ा महत्व है. यमुना के स्वागत सत्कार से प्रसन्न होकर यमराज ने अपनी बहन को वरदान दिया कि जो भी भाई-बहन इस दिन यमुना में स्नान करेगा, वह अकाल-मृत्यु के भय से मुक्त हो होगा और उसके सभी दुखों का नाश भी होगा. 

टीका करने का सही समय

भाई बहन के बंधन को अटूट बनाने के लिए रक्षाबंधन के साथ भैया दूज का पर्व भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. जो भी भाई बहन भैया दूज का पर्व मनाते हैं, उन्हें शुभ मुहूर्त में बहनों से टीका कराने का प्रयास करना चाहिए. क्योंकि शुभ मुहूर्त में किए गए कार्यों के शुभ परिणाम ही मिलते हैं. आज के दिन द्वितीया तिथि रात्रि 10:05 तक रहेगी.  सायं 4.30 सायं  6:00 तक राहुकाल रहेगा, इसलिए भूलकर इस समय टीका करने से बचना है. आज के दिन के शुभ मुहूर्त इस प्रकार है-

सुबह सुबह 7:57 से लेकर रात 9:19 बजे तक

दोपहर सुबह 10:41 से दोपहर 12:00 बजे तक

शाम शाम 6 से रात 9 बजे तक

कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले, इस भगवान का भी  होता है पूजन

जिस तरह भैया दूज के पर्व के दिन बहनों द्वारा भाइयों को टीका लगाने का प्रचलन है, ठीक उसी तरह इस दिन मृत्यु के देवता यमराज के एकांउटेंड कहे जाने वाले चित्रगुप्त भगवान का भी पूजन किया जाता है, जिस कारण इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है. मनुष्य के अच्छे बुरे सभी कर्मों का लेखा-जोखा चित्रगुप्त महाराज के पास होता है, जिस कारण उन्हें यमराज का सहयोगी भी कहा जाता है. मान्यता है कि दूज के दिन विधि विधान से भगवान चित्रगुप्त की पूजा करने वाले को मृत्यु के बाद नरक की प्रताड़ना नहीं भोगनी पड़ती हैं. 

यमराज के निवेदन पर, ब्रह्मा ने की  रचना

पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार यमराज ने ब्रह्मा जी से निवेदन किया कि उन्हें सहायता के लिए न्यायी, बुद्धिमान और जो वेद शास्त्रों का ज्ञाता हो, ऐसे व्यक्ति की जरूरत है. तब ब्रह्मा जी ने कठोर तपस्या की और इस तप से भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति कर उन्हें आदेश दिया कि तुम यमराज के सखा बन कर मनुष्यों के कर्मों का लेखा जोखा रखोगे. भगवान चित्रगुप्त की उत्पत्ति कार्तिक शुक्ल मास की द्वितीया तिथि के दिन हुई थी, तभी से इस तिथि पर कायस्थ चित्रगुप्त और उनके प्रतीक कलम दवात का पूजन शुरू हो गया.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here