दीपावली पर बाजारों में खील, लइया, च्यूड़ा, गट्टा, बताशे और खिलौने की दुकानें सजी हैं और गणेश लक्ष्मी की पूजा के बाद भोग में परम्परागत रूप से इन्हें चढ़ाया भी जाता है, किंतु बहुत कम लोग ही जानते हैं कि इन्हें क्यों चढ़ाया जाता है. एक और खास बात है कि इन चीजों को भोग के रूप में चढ़ाने का चलन उत्तर भारत में कुछ अधिक ही है.
भगवान को क्रेडिट देने का प्रयास
खील, लइया और च्यूड़ा का निर्माण धान से होता है जबकि गट्टा, बताशे और डिजायनर खिलौने जो छोटे बच्चों को खास तौर पर आकर्षित करते हैं, चीनी से बनाए जाते हैं और चीनी का निर्माण गन्ने से होता है. दीपावली के ठीक पहले यह धान और गन्ने की फसल तैयार हो चुकी होती है. धान और गन्ने से बनी हुई चीजें अपने आराध्य को अर्पित कर हम एक तरह से उन्हें क्रेडिट देते हैं कि आपकी कृपा से ही इस बार की फसल ठीक हुई है और आगे भी आपका आशीर्वाद इसी तरह से हमारे परिवार को मिलता रहे. नई फसल का उत्पाद भगवान को चढ़ाने के पीछे तेरा तुझको अर्पण का भाव भी रहता है कि आपका आशीर्वाद न होता तो फसल अच्छी नहीं होती, जब आपकी कृपा का फल है, इस बार की फसल आपको ही अर्पित भी कर रहे हैं.
इन चीजों को चढ़ाने के ज्योतिषीय कारण भी
खील, लइया, च्यूड़ा, गट्टा, बताशे और खिलौने सभी चीजें सफेद रंग की होती है. देवी को प्रसन्न करने के लिए सफेद भोग ही अर्पित किया जाता है. सफेद रंग ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा तथा शुक्र ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है. चंद्रमा की प्रसन्नता से जहां अशांत मन को शांति मिलती है वहीं शुक्र ग्रह जीवन में सुख समृद्धि का प्रदाता है. जीवन में दोनों ही ग्रहों की प्रसन्नता आवश्यक है, दीपावली एक ऐसा अवसर है, जब हम गणपति की आराधना कर ज्ञान और बुद्धि की मांग करते हैं तो लक्ष्मी की आराधना कर धन और कुबेर की पूजा कर आए हुए धन को स्थाई तथा सुरक्षा प्रदान करने की कृपा चाहते हैं.
इन चीजों का निर्माण भी देता है संदेश
खील, लइया, च्यूड़ा, गट्टा, बताशे और खिलौने आदि चीजों का निर्माण भी समाज को संदेश देने का कार्य करता है. धान की खोली यानी कवर हटाने से चावल निकलता है और जब इस चावल को गर्म रेत में पकाया जाता है तो लइया बनती है जिसे लाई भी कहते हैं. यह प्रक्रिया संदेश देती है कि व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए, तप कर निकलने पर ही व्यक्ति उपयोगी होता है. च्यूड़ा या चूरा को भी आंच में तपा कर कूटा जाता है यानी जीवन में निखार लाना है तो चोट खाने के लिए तैयार रहें. खील का निर्माण धान को गर्म करके किया जाता है अर्थात जिंदगी को खिल कर ही जीना चाहिए. गट्टा, खिलौने और बताशे चढ़ाने के पीछे का भाव है कि हमेशा जीवन में मिठास बनी रहे.