महाराष्ट्र के कोल्हापुर स्थित महालक्ष्मी मंदिर को शक्तिपीठ के रूप में मान्यता प्राप्त है. स्थानीय लोग अंबाबाई के रूप में उनकी पूजा करते हैं, इसलिए बहुत से लोग इस मंदिर को अंबाबाई मंदिर भी कहते हैं. इस मंदिर में दिव्य युगल अर्थात भगवान विष्णु और महालक्ष्मी निवास करते हैं. माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में चालुक्य वंश के राजाओं ने कराया था. मंदिर में पत्थर के चबूतरे पर काले रंग के बलुआ पत्थर पर उकेरी गई चार भुजाओं और मुकुटधारी देवी की प्रतिमा स्थापित है. करीब तीन फीट की मां की प्रतिमा के ठीक पीछे उनका वाहन शेर भी खड़ा है. मुकुट में पांच सिर वाला सांप है, इसके अलावा वह एक मातुलिंग फल, गदा, ढाल और एक पीने का कटोरा भी लिए हुए हैं. स्कंद पुराण के लक्ष्मी सहस्रनाम में मां लक्ष्मी की स्तुति ” ॐ नमः शिवाय करवीरा निवासिनिये नमः” के रूप में की गई है, जिसका अर्थ है करवीरा में रहने वाली देवी की जय हो.
समय-समय पर राजवंशों ने दिया विस्तार
मूल रूप से तो चालुक्य वंश के राजा कर्णदेव ने देवी महालक्ष्मी के मंदिर का निर्माण 634 ई. में कराया था, किंतु बाद के अन्य राजवंशों का योगदान भी मंदिर को विस्तार देने में बना रहा. इन्हें करवीर निवासिनी भी कहा जाता है क्योंकि कोल्हापुर का प्राचीन नाम यही था. शिलाहार राजवंश के राजा गंदारादित्य ने 11वीं शताब्दी में देवी महालक्ष्मी के मंदिर में परिक्रमा मार्ग बनवाया. इसके साथ ही उन्होंने मंदिर में देवी महाकाली और महासरस्वती की प्राण प्रतिष्ठा भी कराई. मातुलिंग की स्थापना 12वीं शताब्दी में यादव काल की बताई जाती है क्योंकि यहां मां के दर्शन के लिए आने वाले भक्त मुकुट पर उकेरे गए शिवलिंग को नहीं देख पाते थे क्योंकि यह ढका रहता था. पूर्वी दरवाजा, जो यहां का प्रवेश द्वार है, पर 18वीं शताब्दी के मराठा काल का शिलालेख लगा है, जिसके अनुसार मंदिर का जीर्णोद्धार सेना प्रमुख त्रयम्बक दाभाड़े और यशवंत राव दाभाड़े के साथ-साथ भैरवजी राव गायकवाड़ और भगवान राव गायकवाड़ ने कराया था. श्रीमंत जहागीरदार बाबासाहेब घाटगे ने 1941 में मंदिर में नौ ग्रहों की मूर्तियां स्थापित करवाईं. एक ऊंचे पत्थर के चबूतरे पर नौ ग्रहों की मूर्तियां हैं, जिनमें उनके रथ पर सूर्यदेव, शिवलिंग और अष्टभुजा महिषासुर मर्दिनी भी हैं. इसके सामने ही शेषनाग पर लेटे हुए भगवान विष्णु और आठो दिशाओं के रक्षकों की मूर्तियां भी हैं.
कई तरह की हैं मान्यताएं
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार महालक्ष्मी भगवान विष्णु से नाराज होकर कोल्हापुर में आ गईं. इसके बाद विष्णु जी उन्हें मनाने के लिए पहुंचे, लेकिन वह लौटकर नहीं गईं और इस स्थान पर उन्होंने अपना निवास स्थल बना लिया. इसी कारण इस स्थल की मान्यता बहुत अधिक है. माना जाता है कि इस मंदिर में दर्शन पूजन करने वाले भक्तों को सुख-समृद्धि की कभी कमी नहीं रहती है. मां लक्ष्मी की कृपा उन पर हमेशा बनी रहती है. इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि वर्ष में एक बार मंदिर में मौजूद देवी की प्रतिमा पर सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं. धारणा है कि जो भी भक्त धनतेरस या दीपावली के दिन पूजा-पाठ इस मंदिर में करते हैं, उनके पास धन की कभी कमी नहीं होती. एक अन्य मान्यता के अनुसार, जो इस मंदिर से मिट्टी को अपनी तिजोरी में रखता है, उसकी तिजोरी हमेशा भरी रहती है.