देवी माता के इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि बच्चों का मुंडन और कर्णछेदन यहां कराने से बच्चा जीवन में बुद्धिमान, मेधावी और यशस्वी बनता है. यह भी माना जाता है कि जो भक्त नवरात्र में इस मंदिर में अखंड ज्योति जलाते हैं उनकी सभी मनोकामना माता अवश्य ही पूरी करती हैं. दोनों ही नवरात्रों में यहां पर मेला लगता है और दर्शन करने के लिए रोज हजारों श्रद्धालु आते हैं.
त्रेता युग से है मंदिर का संबंध
14 वर्षों के वनवास में लंकापति रावण सहित तमाम राक्षसों का वध करने के बाद अयोध्या लौटने के कुछ समय के भीतर ही श्री राम का राज्याभिषेक हुआ. उसी समय अयोध्या में माता सीता के चरित्र पर लोग अंगुली उठाने लगे तो भगवान श्रीराम ने उनका त्याग कर दिया. माता सीता उस समय गर्भवती थीं और उन्होंने बिठूर में महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में शरण ली. आश्रम में उन्होंने दो बालक लव और कुश को जन्म दिया और महर्षि के सानिध्य में वह शिक्षा प्राप्त करते हुए बढ़ने लगे. बाद में माता सीता ने श्री राम को पुनः पाने की लालसा में वर्तमान मंदिर स्थल पर कठोर तप किया. तब यहां घनघोर जंगल था और गंगा नदी यहां तक बहती थीं. मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर नगर के व्यस्ततम क्षेत्र बिरहाना रोड में स्थित है. इसी स्थल पर माता सीता ने लव और कुश का मुंडन तथा कर्णछेदन संस्कार कराया था. उनके साथ कमला बिमला सरस्वती नाम की आश्रम की महिलाओं ने भी तप किया था इसलिए यहां पर चार मूर्तियां विराजमान हैं. माता सीता के साथ तीन अन्य महिलाओं द्वारा तप करने के कारण ही यहां का मंदिर तपेश्वरी के नाम से विख्यात हो गया.
अद्भुत है मान्यता
मंदिर के बारे में मान्यता भी अद्भुत है. किसी भी मनोकामना को पूरा करने के लिए लोग मंदिर में अखंड ज्योति जलाते हैं. बच्चों को बड़ी चेचक जिसे लोग बड़ी माता भी कहते हैं, निकलने पर माता पर चढ़ा हुआ नीर लगाने से आराम मिलने की बात भी भक्त बताते हैं. यहां तक कि किसी बड़ी घटना या बीमारी में बच्चे का जीवन बच जाए तो बलि के नाम पर मंदिर में बकरे का कान अमेठ कर माली को लोग कुछ दक्षिणा देते हैं.



