आरती: भक्ति का सरलतम मार्ग, नियम और विधि जो प्रभु को प्रसन्न करे

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Shashishekhar Tripathi

आरती भारतीय धार्मिक परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जो भक्ति का सरल और सुलभ माध्यम है. आरती भगवान के प्रति श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक होती है. इस लेख में हम आरती के महत्त्व, उसके नियम, और उसकी विधि पर विस्तार से चर्चा करेंगे.

आरती भगवान की कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल और प्रभावशाली तरीका है. यह न केवल आध्यात्मिक विकास का मार्ग है, बल्कि मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने का भी उत्तम साधन है. आरती करते समय श्रद्धा और नियमों का पालन करने से प्रभु की कृपा अवश्य प्राप्त होती है. 

आरती का महत्त्व

आरती का तात्पर्य है कि जिस घर में भगवान के चरण कमलों का ध्यान रखते हुए भक्ति भाव से आरती होती है, वहाँ प्रभु का वास होता है. शास्त्रों में भक्ति को सर्वोच्च स्थान दिया गया है, जिसमें श्रवण, कीर्तन, पादसेवन, अर्चन, और वंदन के बाद आरती की जाती है. इसे अरार्तिक या निराजन भी कहा जाता है.

आरती के समय प्रभु की मूर्ति के समक्ष बीज मंत्रों का उच्चारण और पूजा सामग्री का उपयोग अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. यह भी माना जाता है कि आरती पूजा के अंत में की जाती है ताकि पूजा में रह गई किसी त्रुटि की पूर्ति हो सके.

 कैसे करें आरती

आरती की विधि बहुत सरल है, लेकिन इसे करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना जरूरी है. यदि किसी व्यक्ति को देवताओं के बीज मंत्र का ज्ञान न हो, तो ‘ॐ’ का उच्चारण करते हुए आरती करनी चाहिए. आरती के समय दीपक को ऐसे घुमाना चाहिए कि ‘ॐ’ की आकृति बने.

आरती की थाल में क्या रखें

आरती के लिए थाल में कपूर या घी का दीपक जलाया जा सकता है. साथ ही, उसमें पूजा के फूल और कुंकुम अवश्य रखें. आरती करते समय सबसे पहले भगवान के चरणों की चार बार, नाभि की दो बार, मुख की एक बार और फिर समस्त अंगों की सात बार आरती करनी चाहिए. इसके बाद जल को भगवान के चारों ओर घुमाकर चरणों में अर्पित करना चाहिए. आरती के अंत में थाल में रखे पुष्प और कुंकुम से भगवान को तिलक करें.

आरती के नियम

आरती करते समय कुछ नियमों का पालन करना अनिवार्य है. बिना पूजा, उपासना, मंत्र जाप, या प्रार्थना के आरती करना उचित नहीं होता. यह भी ध्यान रखें कि आरती पूजा की समाप्ति पर ही की जाए. यदि दीपक से आरती की जा रही हो तो पंचमुखी दीपक का उपयोग करना श्रेष्ठ होता है. आरती के दौरान सिर ढकना चाहिए, विशेषकर महिलाओं को. 

आरती लेने के बाद दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों और माथे के मध्य भाग पर लगाना चाहिए. आरती लेने के बाद कम से कम पाँच मिनट तक हाथ न धोएं, इससे सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है.

विभिन्न देवताओं की आरती कितनी बार करें?

प्रत्येक देवता की आरती करने का अपना विशिष्ट क्रम है:

– विष्णु भगवान की बारह बार आरती करनी चाहिए.

– सूर्य भगवान की सात बार आरती करनी चाहिए क्योंकि उनके रथ में सात घोड़े रहते हैं.

– दुर्गा माता की नौ बार आरती करनी चाहिए.

– शंकर भगवान की ग्यारह बार आरती की जाती है.

– गणेश जी की चार बार आरती करनी चाहिए, क्योंकि वे चतुर्थी तिथि के अधिष्ठाता हैं.

यदि सभी देवी-देवताओं की सामूहिक आरती करनी हो तो सात बार आरती करने का विधान है.

आरती से मिलने वाली ऊर्जा

आरती केवल पूजा का हिस्सा ही नहीं, बल्कि एक ऊर्जा का स्रोत भी है. जब हम आरती लेते हैं, तो यह ऊर्जा हमारे शरीर में सकारात्मक प्रभाव डालती है. आरती के दौरान दीपक की ज्योति से हमारे भीतर शक्ति का संचार होता है, जो हमें मानसिक और शारीरिक रूप से सशक्त बनाती है.

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