आज होगी कूष्मांडा देवी की आराधना, होता है रोग और शत्रु का नाश साथ ही मिलता है आयु, यश, बल और आरोग्य

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Anjani Nigam

शक्ति की उपासना के पर्व नवरात्र के चौथे दिन मां दुर्गा के चौथे रूप कूष्मांडा के रूप में पूजा जाता है. माता कूष्मांडा ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली देवी हैं. देवी ने अपनी मंद मंद हंसी से अंड अर्थात ब्रह्मांड को उत्पन्न किया. इन्हें कुम्हड़े की बलि बहुत प्रिय है जिसके कारण इन्हें कूष्मांडा नाम से पुकारा जाता है.  

आदिशक्ति, आदि स्वरूपा और अष्टभुजा नाम भी 

पौराणिक कथाओं के अनुसार सृष्टि रचना के पहले हर तरफ अंधेरा ही अंधेरा था, तब देवी ने हल्के से हंसा, उनकी हंसी से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई. ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने के कारण ही उन्हें आदिशक्ति या आदिस्वरूपा भी कहा गया. आठ भुजाएं होने के कारण इन्हें अष्टभुजा भी कहा जाता है. इनके हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल का फूल, अमृत से भरा कलश, चक्र और गदा के साथ ही आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है. सिंह की सवारी करने वाली माता को कुम्हड़े की बलि अतिप्रिय है. कुम्हड़ा एक फल होता है जिससे पेठा बनाया जाता है. इसे संस्कृत भाषा में कूष्मांड कहते हैं जिसके आधार पर देवी को कूष्मांडा भी कहा जाता है. सूर्य लोक में रहने के कारण ही इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य के समान चमकती है. इनकी आराधना से श्रद्धालु को रोग और शोक का भय बिल्कुल भी नहीं रहता है और उसे आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है. सच्चे मन से इनकी पूजा करने वाले को बड़ी ही आसानी से उच्च पद प्राप्त होता है. आराधना करने वाले को देवी व्याधियों से मुक्ति प्रदान कर सुख समृद्धि प्रदान करती हैं. 

देवी के नाम का अर्थ समझिए 

‘कू’ का अर्थ है छोटा, ‘ष् ’ का ऊर्जा और ‘अंडा’ शब्द ब्रह्मांडीय गोले का प्रतीक है. सभी लोग जानते हैं कि संपूर्ण ब्रह्मांड में ऊर्जा का संचार सूक्ष्म से वृहत अर्थात छोटे से बड़े की ओर होता है. जिस तरह एक छोटा सा बीज बोया जाता है, अंकुरित होने पर पहले पौधा फिर वृक्ष बनता है और फूल व फल  आदि निकलते हैं.  बाद में उसी फल से नए बीजों का जन्म होता है. इसी तरह चेतना अथवा ऊर्जा में भी सूक्ष्म से सूक्ष्मतम और विशाल से विशालतम होने का गुण है, जिसकी व्याख्या मां कूष्मांडा करती हैं. इससे स्पष्ट होता है कि देवी मां हमारे शरीर में प्राण शक्ति के रूप में उपस्थित हैं. कुम्हड़े के समान ही भक्त भी अपने जीवन में पर्याप्त और पूर्णता का अनुभव करें और साथ ही संपूर्ण जगत के हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति का अनुभव करें. हर कण में ऊर्जा और प्राणशक्ति, बुद्धिमत्ता का अनुभव करना ही कूष्मांडा है.

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