DHARM : भोले शंकर बहुत ही भोले हैं, जो भी सच्चे मन क्रम वचन से भगवान शंकर की स्तुति करते हैं और पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप करते है,
DHARM : भोले शंकर बहुत ही भोले हैं, जो भी सच्चे मन क्रम वचन से भगवान शंकर की स्तुति करते हैं और पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप करते है, शिव जी उनसे बहुत प्रसन्न होते हैं और मनचाहा वरदान देते हैं। ऐसी ही घटना कैलाश पर्वत पर हुई, जब एक असुर मत्सर ने महादेव की उपासना कर ले लिया अनमोल वरदान जिसके प्रभाव से मत्सर ने तीनों लोकों पर अपना अधिकार जमा दिया। जिसके बाद से देवताओं में मच गया हड़कंप और वे सभी त्राहिमाम त्राहिमाम करते हुए कैलाशपति के पास पहुंचे।
कहां से आया मत्सर
इंद्र के प्रमोद से एक असुर उत्पन्न हुआ। जिसका नाम मत्सर था, यह मत्सर बहुत बलशाली था, उसने दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को कठोर तपस्या करके प्रसन्न किया और शुक्राचार्य से शिव पंचाक्षरी मंत्र (ओम नमः शिवाय) की दीक्षा ली । इस मंत्र को साधते हुए देवादिदेव महादेव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप करना शुरू कर दिया।
असुर मत्सर ने पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप प्रारंभ कर दिया कई वर्ष बीत गए उसका जप तप अखिण्डित चलता रहा
कैसे प्रसन्न किया भगवान महादेव को
असुर मत्सर ने पंचाक्षरी मंत्र (ओमनमःशिवाय) का जाप प्रारंभ कर दिया। कई वर्ष बीत गए उसका जप तप अखिण्डित चलता रहा। मत्सर की लगन और भक्ति देखकर महादेव का मन प्रसन्न हो गया और वह उमा सहित मत्सर को दर्शन देने प्रकट हो गए। शिव ने उसे वरदान दिया कि तुमको किसी से भय न लगे, सदा भयमुक्त रहते हुए विजयी रहो।
दैत्यराज बनते ही जाग उठी महत्वाकांक्षा
वरदान प्राप्त करके जब मत्सर वापस लौटा तो दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने उसे दैत्यों के राजा बनाते हुए दैत्यराज का पद दिया। तब सभी दैत्यों ने मत्सर को पूरे विश्व पर विजय प्राप्त करने की सलाह दी। दैत्यों के इस परामर्श ने मत्सर के अंदर महत्वाकांक्षा की ज्वालामुखी जगा दी। तब मत्सर ने पृथ्वी के राजाओं पर धाबा बोल दिया। इसके आतंक से बहुत से राजा मारे गए, कुछ भाग गए और कुछ ने वही हथियार डाल दिए। मत्सर लगातार अपना क्षेत्र बढ़ाता जा रहा था और धीरे-धीरे उसने पूरी पृथ्वी और अन्य लोकों पर अपना अधिकार जमा लिया।
देवलोक सहित कैलाश पर भी पड़ी मत्सर की नजर
पूरी पृथ्वी को अपने अधिकार में लेने के बाद मत्सर की निगाह देवलोक पर पड़ी और उसने देवलोक पर चढ़ाई कर दी जहां पर उसने वरुण, कुबेर और यम को भी धूल चटाते हुए पराजित कर दिया। मत्सर के इस उपद्रव के बारे में सुनकर भगवान शंकर ने इस घटना की निंदा की। जब मत्सर को पता चला कि भगवान शिव ने उसकी निंदा की है, तब अत्यंत क्रोधित होकर मत्सरासुर ने कैलाश पर चढ़ाई कर दी। महादेव और मत्सर की बीच भयंकर युद्ध हुआ। किंतु उस दैत्य ने शिव जी को पाश में बांध दिया, फिर मत्सर कैलाश का स्वामी बनकर वहीं रहने लगा । मत्स्य असुर ने बैकुंठ और कैलाश के शासन का भार अपने दोनों पुत्रों सुंदर प्रिय और विषय प्रिय को देकर स्वयं वैभव संपन्न मतस्रावास में रहने लगा।
मत्सरासुर के अत्याचारों से मुक्ति के लिए देवता ने दिया अनुष्ठान मंत्र
मत्सरासुर के अत्याचारों से दुखी होकर सभी देवता उसके अंत का उपाय सोचने के लिए इकट्ठा हो चिंतित हो रहे थे, कि तभी वहां भगवान दत्तात्रेय आ पहुंचे, दत्तात्रेय भगवान ने देवताओं को वक्रतुंड के एकाक्षरी मंत्रगं का उपदेश देकर उन्हें अनुष्ठान करने को कहा। सभी देवता भगवान पशुपति के साथ वक्रतुंड का ध्यान और एकाक्षरी मंत्र का जप करने लगे उनकी आराधना से खुश होकर फल दाता वक्रतुंड प्रकट हुए और बोले आप लोग निश्चिंत हो जाये, मत्सरासुर का घमंड मैं तोडूंगा ।
दैत्य मत्सर का कैसे टूटा घमंड
मत्सरासुर के राज्य में वक्रतुण्ड और मत्सरासुर के बीच पांच दिनों तक लगातार घमासान युद्ध चलता रहा, पर किसी भी पक्ष की विजय न हो सकी। मत्सरासुर और उनके दोनों पुत्र सुंदर प्रिय और विषय प्रिय ने युद्ध भूमि में पार्वती वल्लभ को मूर्छित किया ही था कि वक्रतुंड के दो गणों ने असुर पुत्रों को मार दिया । पुत्रों की मृत्यु से व्याकुल मत्सरासुर रणभूमि दहाड़ता हुआ पहुंचा, जहां वक्रतुंड ने प्रभावशाली स्वर में उससे कहा कि हे दुष्ट! असुर यदि तुझे अपने प्राण प्रिय हैं तो तू मेरी शरण आजा अन्यथा तू निश्चय ही मारा जाएगा । यह गर्जना सुन वह डर गया और उनकी स्तुति करने लगा। असुर की स्तुति से प्रसन्न होकर वक्रतुंड ने उसे अपनी भक्ति प्रदान की। सभी देवगणों को उनका राज्य वापस प्राप्त हुआ।