Shani Shingnapur Temple: महाराष्ट्र के अहिल्या नगर के एक शिंगणापुर गांव में है न्याय के देवता शनिदेव का विश्व विख्यात मंदिर. अहिल्यानगर को लोग अहमदनगर के नाम से भी जानते हैं क्योंकि यह इस जिले का पुराना नाम है लेकिन शिंदे सरकार ने इसका नाम मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर के नाम पर कर दिया था. दुनिया भर के सभी मंदिरों में छत के नीचे भगवान की मूर्ति विराजती है लेकिन यह एक ऐसा मंदिर है जहां पर कोई छत ही नहीं है.
मूर्ति मिलने और छत न बनाने की कहानी
शनिदेव के इस मंदिर को सजीव मंदिर माना जाता है अर्थात इस मंदिर के भगवान यहीं पर वास करते हैं. वे अभी भी काले पत्थर में रहते हैं जिसके कारण मंदिर भारत ही नहीं विश्व भर में प्रसिद्ध है. यहां की मूर्ति को स्वयंभू माना जाता है यानी भगवान शनि स्वयं काले पत्थर के रूप में पृथ्वी से अवतरित हुए थे. माना जाता है कि कलियुग की शुरुआत के दौरान कुछ चरवाहों को इस गांव में ये काली मूर्ति मिली थी, काले पत्थर की यह स्वयंभू मूर्ति पांच फुट नौ इंच ऊंची व एक फुट छह इंच चौड़ी है जो संगमरमर के एक चबूतरे पर धूप में ही विराजमान है. यहां शनि महाराज आठो प्रहर की धूप, आंधी, तूफान, जाड़ा, गर्मी और बारिश सभी मौसमों में बिना छत्र धारण किए खड़े हैं. इसकी भी रोचक कहानी है, जिस रात चरवाहों को मूर्ति मिली उसी रात शनि भगवान एक चरवाहे के सपने में आए. उन्होंने चरवाहे को मूर्ति की पूजा करने के तरीकों के बारे में बताया तभी उसने मंदिर बनाने के बारे में प्रश्न किया तो शनिदेव ने उसे सपने में ही कहा कि मुझे छत की आवश्यकता नहीं है क्योंकि सारा आकाश ही मेरी छत है. यही कारण है कि भगवान शनि की काली प्रतिमा आज भी खुले आसमान के नीचे है. साधारण से लेकर राजनेता व प्रभावशाली अधिकारी सभी वर्गों के लोग यहां नियमित रूप से हजारों की संख्या में दर्शनार्थी आते हैं.
गांव के घरों में कभी नहीं लगते ताले
शनि शिंगणापुर विश्व का एक ऐसा गांव है, जहां घरों में दरवाजे और ताले नहीं लगाए जाते हैं. दिलचस्प बात ये भी है कि गांव में कभी चोरी नहीं हुई. मान्यता है कि शनिदेव द्वारा सुरक्षित गांव में चोर चोरी कर ही नहीं सकते और जो कोई भी चोरी करने का प्रयास करता है उसे दैवीय दंड मिल जाता है. यदि किसी के घर में कीमती वस्तु गहने, नकदी आदि होती है, तो उसे कपड़े की किसी थैली में थैली तथा डिब्बे आदि का इस्तेमाल करते हैं. यहां तक कि आने वाले भक्त भी अपने वाहनों में ताला नहीं लगाते भले ही कितना ही बड़ा मेला लगा हो. वैसे तो प्रत्येक शनिवार को दर्शनार्थियों की खासी भीड़ आती है लेकिन शनि अमावस्या को तो मेला जैसा लगता है.
ज्योतिषीय मान्यता भी है जबर्दस्त
कहावत शनि क्रूरे वक्री अति क्रूरे. दूसरी कहावत है सांप का काटा और शनि का मारा पानी नहीं मांगता. शनि की अशुभ दृष्टि जिस पर भी पड़ती है वह समूल नष्ट हो जाता है. महर्षि पराशर के अनुसार कुंडली में शनि जिस अवस्था में होता है, उसके हिसाब से ही फल देता है. वास्तव में शनिदेव विभिन्न परिस्थितियों में तपा कर व्यक्ति को उन्नति के पथ पर बढ़ने की सामर्थ्य एवं लक्ष्य प्राप्ति के साधन उपलब्ध कराते हैं. नवग्रहों में शनि को इसलिए सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है, क्योंकि यह एक राशि में सबसे ज्यादा समय तक रहता है.