कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन से शुरु होने वाले शालिग्राम व तुलसी के पाणिग्रहण संस्कार के कार्यक्रम पूर्णिमा तक जारी रहते हैं. तुलसी एवं शालिग्राम के परस्पर संबंध से पूर्व इनकी उत्पत्ति की उपादेयता पर चर्चा करना प्रासंगिक प्रतीत होता है.
इस तरह मिलीं, शंखचूड़ को पत्नी से शक्ति
देवी भागवत पुराण के नवम स्कंद में लिखा है कि महाराज धर्मध्वज एवं उनकी रानी माध्वी को जो अनोखी संतान पुत्री के रूप में प्राप्त हुई, उस दिन शुभ संयोग से कार्तिक पूर्णिमा थी. इस विलक्षणा पुत्री का नाम तुलसी रखा गया जो धर्म परायण और नियमों को मानने वाली बहुत ही विदुषी थी. बड़ी होते ही तुलसी का हाथ शंखचूड नामक राक्षस को सौंप दिया गया जो बहुत ही शक्तिशाली थी. सात्विक परिवार में जन्म लेने और आध्यात्मिक ज्ञान से ओतप्रोत होने के कारण विवाह होते ही तुलसी में अतुलनीय सतीत्व का प्राकट्य हुआ. उसके सतीत्व के फलस्वरूप पति शंखचूड को भी वे शक्तियां मिल गईं, जिनके चलते देवताओं को भी उससे हारना पड़ा. देवताओं की करुण पुकार सुनकर विष्णु भगवान ने शंखचूड़ को हराने के लिए उसका छाया प्रतिबिम्ब स्वरूप बनाया और तुलसी के पास पहुंचे, तुलसी वास्तविकता नहीं समझ सकी और उन्हें ही पति मान बैठी. इस तरह उसका सतीत्व को भंग करने में विष्णु भगवान को सफलता मिल गयी. इससे राक्षस शंखचूड़ का वध हो सका किंतु उसे वैकुंठ लोक की प्राप्ति हुई. इधर जब तुलसी को यथार्थ का बोध हुआ तो उन्होंने श्री हरि को शालिग्राम बनने का अभिशाप दे दिया और खुद समाधि ग्रहण कर ली.
तुलसी बन गईं गंडकी नदी और केस बने पौधे
तुलसी के समाधि लेते ही उनके शरीर से गंडकी नदी अवतरित हुईं और तुलसी के केशों से पौधे निकलने लगे और यह प्रक्रिया निरंतर जारी रही. शालिग्राम में विराजमान भगवान श्री हरि के विग्रह स्वरूप को तुलसी का सामीप्य अत्यधिक प्रिय है. पुराणों में भी शालिग्राम तुलसी के शाश्वत संबंध का उल्लेख है. भगवान राधा कृष्ण की रास लीलाओं के लिए विश्व विख्यात वृन्दावन का तुलसी वन इसी रूप में जाना जाता है. तुलसी को वृन्दा भी कहा जाता है. तुलसी चालीसा के पहले और अंतिम दोहों को देखिए.
जय – जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानि !
नमो नमो हरि प्रेयसी श्री वृन्दा गुण खानि !!
तुलसी चालीसा पढ़हिं तुलसी तरु गृह धारि !
दीप दान करी पुत्र फल पापहिं बंध्यहुं नारि !!
तुलसी के औषधीय गुण
तुलसी के पौधे की पत्तियां स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक हैं. तुलसी में एंटीऑक्सीडेंट और पोषक तत्व होते हैं, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं. रात में सोने के पहले तांबे के पात्र में जल के भीतर तुलसी के कुछ पत्ते डाल कर सुबह जागने पर उस जल को पीने से पाचन तंत्र मजबूत होता है. इसमें एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं. इसकी गर्म तासीर के चलते तुलसी के पत्ते का काढ़ा पीने से बुखार ठीक होता है. जिस घर में तुलसी का पौधा रहता है, वहां पर नकारात्मकता नहीं आने पाती है और सुख समृद्धि बढ़ती है.