दीपावली के दूसरे दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा की जाती है जिसे लोग अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं. भगवान श्री कृष्ण के साथ जुड़ी एक घटना की याद में यह पर्व द्वापर युग से मनाया जा रहा. इस पर्व के माध्यम से जहां हम प्रकृति की पूजा करते हैं वहीं गोधन अर्थात गाय का पूजन भी किया जाता है. मान्यता के अनुसार गाय गंगा नदी के समान पवित्र है और इसके शरीर के भीतर सभी देवी देवताओं का वास है.
इस प्रकार से करें पूजा
इस दिन घर के मुख्य द्वार पर गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा की जाती है. कुछ घरों के आंगन के मध्य में गाय के गोबर से श्रीकृष्ण द्वारा गोकुल वासियों के सहयोग से गोवर्धन पर्वत उठाने के दृश्य को चित्रित किया जाता है. पुराणों के अनुसार गाय के गोबर में लक्ष्मी का निवास होता है, सुख समृद्धि के लिए इस पूजा को करने की परम्परा है. सायंकाल गोधूलि वेला में उसी गोबर को समेट के पर्वत का आकृति बनाते हुए बीच में एक दीया जला कर सात बार परिक्रमा की जाती है.
गोवर्धन पूजा की कथा भी जानिए
एक बार श्री कृष्ण अपने ग्वाल बालों के साथ गोवर्धन पर्वत की तलहटी के पास पहुंचे तो देखा गोपियां 56 प्रकार के भोजन रख कर उत्सव मनाते हुए नाच गा रही हैं. श्री कृष्ण ने उत्सव का कारण पूछा तो बताया गया कि वृत्तासुर को मारने और बादलों के स्वामी इंद्रदेव की पूजा हो रही है. उनकी प्रसन्नता से ही यहां पर वर्षा होती है अन्न पैदा होता है. श्री कृष्ण बोले, यदि देवता स्वयं आकर भोग लगाएं तो तुम लोगों को उत्सव अवश्य ही करना चाहिए. इंद्र की आलोचना सुन गोपियों ने उनसे निंदा बंद करने के लिए कहा, वह बोलीं, इंद्र के कुपित होने पर अति वर्षा या सूखा पड़ सकता है. इस पर उन्होंने कहा कि इंद्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है, इसकी पूजा करनी चाहिए. अंततः श्री कृष्ण की बात मान कर सब गोवर्धन के लिए अपने अपने घरों से पकवान ले आए और श्री कृष्ण की बताई विधि से करने लगे. उधर श्री कृष्ण पर्वत में प्रवेश कर गए और गोकुल वासियों के भोग को खा लिया. गोकुल वासी इस बात से प्रसन्न थे कि उनकी पूजा स्वीकार कर ली गयी. जानकारी मिलने पर महर्षि नारद ने सारा समाचार इंद्रदेव को बताया तो इंद्र देव ने क्रोध में बादलों को ब्रज में अत्याधिक वर्षा का आदेश दिया. हर तरफ पानी ही पानी हो गया तो ब्रज वासी त्राहि त्राहि करने लगे. उनकी पुकार सुन श्री कृष्ण ने कहा सब लोग गोवर्धन की शरण में चले जाओ वह इस अति वर्षा से सबकी रक्षा करेंगे. बारिश के न थमने पर श्री कृष्ण ने सबके सहयोग से पर्वत को उठाने के लिए कहा किंतु ब्रज वासी इस कार्य को नहीं कर सके. इस पर श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठा अंगुली पर पर्वत को उठा कर पशुओं सहित सबको बारिश से सुरक्षित किया. इस चमत्कार को जान ब्रह्मा जी ने इंद्र को कृष्णावतार की बात बताई तो इंद्रदेव ने उनसे क्षमा मांगी. श्री कृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रज वासियों से कहा कि वह हर वर्ष गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट का भोग लगाएं. तभी से यह पर्व पूरे भारत में हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है.
पर्व से मानवता को संदेश
इस पर्व के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण ने प्रकृति की आराधना के साथ ही सामाजिक एकता का संदेश भी दिया. अन्नकूट में नए अनाज और सब्जिओं का भोग भगवान के निमित्त बना कर लगाया जाता है जिसे छप्पन भोग कहते हैं. महोत्सव मनाने से मनुष्य को लंबी आयु तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है. इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराके धूप-चंदन तथा फूल माला पहनाकर उनकी पूजा की जाती है.