दीपावली पर्व मनाने जा रहे हैं तो कारण भी जान लीजिए, निशीथ काल में क्या करें और क्या न करें भी समझना होगा

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हिंदू धर्म में दीपावली को बड़े पर्वों में से एक माना जाता है और इसकी तैयारियां कम से कम एक महीने पहले तो शुरु ही जाती है. कार्तिक मास में अमावस्या को मनाए जाने वाले इस त्योहार को भारत ही नहीं विदेशों में भी बसे हिंदू अंधकार पर प्रकाश की विजय के रूप में मनाते हैं. दीपावली को लोग दीपोत्सव भी कहते हैं क्योंकि इसमें दीपों से घर संसार को जगमग किया जाता है. दरअसल दीपावली संस्कृत के दो शब्दों से मिल कर बना है दीप और आवली, दीप से स्पष्ट ही है कि दीया या दीपक और आवली का अर्थ है श्रृंखला. इस तरह दीपावली में घरों, मंदिरों और सभी जगहों पर दीपों की माला प्रज्जवलित की जाती है.  

युगों पुराना है पर्व का इतिहास

दीपावली पर्व का उल्लेख पद्म पुराण और स्कंद पुराण में भी मिलता है. स्कंद पुराण के अनुसार यह पर्व सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है, जो लोगों को प्रकाश और ऊर्जा प्रदान करता है. त्रेता युग में प्रभु श्री राम 14 वर्ष के वनवास में माता सीता के हरण के बाद लंकापति रावण का वध कर माता सीता को छुड़ाया और सीता तथा भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौट तो वहां के निवासियों ने पूरे नगर को दीपों से जगमग किया था. 

नचिकेता और मृत्यु के देवता से संवाद

दीपावली के पर्व की एक कहानी नचिकेता और मृत्यु के देवता यम के संवाद से भी जुड़ी है जिसका जिक्र कठोपनिषद में है. वाजश्रवा नाम के ऋषि ने ऐसे यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सब कर दान कर दिया जाता है. ऋषि दूध न देने वाली बीमार गायों को भी दान कर रहे थे तो उनके पुत्र नचिकेता को यह अच्छा नहीं लगा और पिता से पूछा, पिता जी सुना है आप जिस यज्ञ को कर रहे हैं उसमें सबकुछ दान कर दिया जाता है, क्या आप मुझे भी. नचिकेता ने दो बार पूछा किंतु उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया और तीसरी बार पूछने पर क्रोध में कहा, हां तुम्हें मृत्यु के देवता यम को दूंगा. नचिकेता वहां से चुपचाप यमलोक चला गया किंतु यमराज वहां नहीं मौजूद थे. तीन दिन और तीन रातें उनके द्वार पर बिना कुछ खाए पिए इंतजार करता रहा. वापस लौटने पर उन्होंने नचिकेता को देखा तो अपने सेवकों से अंदर बुलवाया और जल आदि देने के बाद कहा कि तुमने तीन दिन मेरी प्रतीक्षा की है जिससे मैं प्रसन्न हूं इसलिए तीन वरदान मांग सकते हो. नचिकेता ने कहा कि मेरे पिता को मेरी चिंता न रहे और उनका क्रोध समाप्त हो जाए और पृथ्वी पर जाने वह मुझे पहले जैसा ही प्यार दें. यमराज ने तथास्तु कह दूसरा वर मांगने को कहा तो उसने हवन की विधि पूछी. इस पर भी सहमति दे कर तीसरे वरदान के लिए पूछा तो नचिकेता ने जीवन और मृत्यु के संबंध के बारे में जानना चाहा किंतु यमराज बोले इस रहस्य के स्थान पर कोई भी सांसारिक सुख मांग लो किंतु नचिकेता तो अडिग रहे. फिर यम ने बताया कि आत्मा अमर है न इसका जन्म हुआ और न  ही मृत्यु होती है. उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि यह शरीर रथ है, बुद्धि सारथी, इन्द्रियां घोड़े, विवेक लगाम और आत्मा रथ का स्वामी है. आत्मा शरीर, मन और इन्द्रियों से श्रेष्ठ है. इस तरह नचिकेता ने यमराज से आत्म के अमरत्व का रहस्य जानकर आत्मज्ञान की प्राप्ति की. आत्मज्ञान का अर्थ अपने भीतर ज्ञान का दीप चलाने से है. दोनों का संवाद सिखाता है कि अज्ञान और भौतिकता के अंधकार से बाहर निकलकर आत्मज्ञान और सत्य की ओर बढ़ना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए.  

निशीथ काल में न सोएं और न ही खेलें जुआं

दीपावली की रात निशीथ काल में धर्मशास्त्री जागने के लिए कहते हैं. इसके पीछे का भाव है एक ओर आपने शुभ मुहूर्त में गणेश जी के साथ लक्ष्मी जी को अपने घर पर आगमन का न्योता दिया है और आप स्वयं ही सो जाएंगे तो उन्हें रिसीव कौन करेगा लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि आप रात बिताने के लिए जुआ खेलने बैठ जाएं. यदि आप ऐसा कर रहे हैं तो गलत होगा क्योंकि जुआ खेलने का परिणाम आप महाभारत काल में देख चुके हैं. इस रात घर के सारे लोगों को मिल कर भजन कीर्तन और सत्संग करना चाहिए. इस रात सो कर या जुआ खेल कर इस गोल्डन अपॉर्चुनिटी को कतई नहीं गंवाना चाहिए.  

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