अहोई अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान करने से गूंज उठती हैं घर के आंगन में किलकारियां

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भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में स्थित गोवर्धन गिरधारी की परिक्रमा मार्ग पर एक चमत्कारी कुंड है, जिसे राधा कुंड के नाम से जाना जाता है. यह कुंड अपने दिव्य गुणों के लिए प्रसिद्ध है, खासकर उन नि:संतान दंपत्तियों के लिए जो कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि में यहां स्नान करते हैं. मान्यता है कि इस परंपरा का पालन करने से दंपत्तियों को संतान की प्राप्ति होती है.

 अहोई अष्टमी का पर्व

अहोई अष्टमी का पर्व यहां प्राचीनकाल से मनाया जाता है. इस दिन पति और पत्नी दोनों ही निर्जला व्रत रखते हैं. मध्य रात्रि में राधा कुंड में डूबकी लगाने से उनकी संतान की इच्छा शीघ्र पूरी होती है. इस वर्ष अहोई अष्टमी 24 अक्टूबर को है, जब भक्तजन इस चमत्कारी कुंड में स्नान करने के लिए एकत्र होते हैं.

इसके अलावा, जिन दंपत्तियों की संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है, वे भी अहोई अष्टमी के दिन अपनी संतान के साथ राधा रानी की शरण में हाजरी लगाने आते हैं. यह प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है, और आज भी भक्तजन इसे श्रद्धा के साथ निभाते हैं.

 राधा कुंड की कथा

इस प्रथा से जुड़ी एक रोचक कथा पुराणों में भी वर्णित है. जब कंस ने भगवान श्री कृष्ण का वध करने के लिए अरिष्टासुर नामक दैत्य को भेजा, तब अरिष्टासुर गाय के बछड़े के रूप में श्री कृष्ण की गायों के बीच आया. भगवान श्री कृष्ण ने उसे पहचान लिया और उसे पकड़कर जमीन पर फेंक दिया और वध कर दिया.

इस घटना को देखकर राधा जी ने श्री कृष्ण से कहा कि उन्हें गौ हत्या का पाप लग गया है. इस पाप से मुक्ति के लिए उन्होंने सभी तीर्थों के दर्शन करने का सुझाव दिया. राधा जी की बात सुनकर श्री कृष्ण ने देवर्षि नारद से इस समस्या के समाधान के लिए उपाय मांगा. नारद जी ने बताया कि सभी तीर्थों का आह्वाहन करके उनका जल एकत्रित करें और उसमें स्नान करें.

 कुंड का निर्माण

नारद जी के निर्देशानुसार, श्री कृष्ण ने एक कुंड में सभी तीर्थों के जल को आमंत्रित किया और स्नान करके गौ हत्या के पाप से मुक्त हो गए. इस कुंड को कृष्णकुंड कहा जाता है. मान्यता है कि इस कुंड का निर्माण श्री कृष्ण ने अपनी बांसुरी से किया था. इसके बाद, राधा जी ने अपने कंगन से एक कुंड खोदा. जब श्री कृष्ण ने उस कुंड को देखा, तो उन्होंने उसे स्नान करने का वरदान दिया, जिसके बाद यह कुंड राधाकुंड के नाम से प्रसिद्ध हो गया.

अहोई अष्टमी पर राधा और कृष्ण कुंड की विशेषता

पुराणों के अनुसार, अहोई अष्टमी तिथि के दिन ही राधा कुंड और कृष्णकुंड का निर्माण हुआ था. इसलिए इस दिन इन कुंडों में स्नान करना विशेष महत्व रखता है. कृष्णकुंड का जल दूर से देखने पर काला और राधाकुंड का जल सफेद दिखाई देता है, जो उनकी अद्वितीयता को दर्शाता है. इस प्रकार, राधा कुंड केवल एक जलाशय नहीं है, बल्कि यह संतान प्राप्ति की आशा और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है, जो भक्तों को श्री कृष्ण और राधा जी की कृपा प्राप्त करने का अवसर प्रदान करता है.

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