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द्रोण ने बाण चलाने को कहा तो अर्जुन से गिद्ध का सिर काट गिराया। इससे गुरु बहुत ही प्रसन्न हुए।

Dharma : जानिए किन दो घटनाओं से गुरु द्रोणाचार्य अर्जुन से हुए प्रसन्न फिर उन्होंने आशीर्वाद में दिया अचूक अस्त्र 

Dharma : गुरु द्रोणाचार्य तो पूरी लगन से कुरुवंश के राजकुमारों को अस्त्र-शस्त्र का ज्ञान दे ही रहे थे, काफी समय तक उन्हें ज्ञान देने के बाद लगा शिष्यों की परीक्षा ली जाए कि उन्होंने कहां तक सीखा है। उन्होंने एक नकली गिद्ध बनवाकर उसे एक पेड़ पर पत्तों के बीच में इस तरह टांग दिया कि उसका अगला भाग ही दिख रहा था।

राजकुमारों के गलत जवाब से झुंझलाए गुरू

गुरु ने सभी राजकुमारों को बुलवाया और धनुष पर बाण चढा कर तैयार रहो, तुम्हें पेड़ पर बैठे गिद्ध का सिर धड़ से अलग करना है। उन्होंने सबसे पहले युधिष्ठिर को बुलाकर पूछा, क्या तुम इस पेड़ पर बैठे गिद्ध को देख रहे हो। युधिष्ठिर बोले, हां गुरुवर मुझे गिद्ध, पेड़ और आप और भाई सभी दिख रहे हैं। द्रोणाचार्य ने खीझ कर उन्हें हटाया और दुर्योधन तथा अन्य सभी को बुलाया किंतु सबका उत्तर एक जैसा ही था। इसके बाद आचार्य ने अर्जुन को निशाना लगाने को कहा और पूछा क्या तुम गिद्ध, पेड़ और मुझे देख रहे हो। अर्जुन का उत्तर था, गुरुवर मुझे तो सिर्फ गिद्ध दिख रहा है। इस पर गुरु ने पूछा उसकी आकृति कैसी तो अर्जुन ने जवाब दिया, मुझे सिर्फ उसका सिर दिख रहा है। द्रोण ने बाण चलाने को कहा तो अर्जुन से गिद्ध का सिर काट गिराया। इससे गुरु बहुत ही प्रसन्न हुए।

अर्जुन ने मगर को मार कर गुरु को छुड़ाया

इसी तरह एक बार गंगा स्नान कर रहे द्रोणाचार्य की जांघ मगर ने पकड़ ली। द्रोण चाहते तो स्वयं भी उससे छूट सकते थे लेकिन उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि मगर को मार कर बचाओ। उनकी बात पूरी होने के पहले ही अर्जुन ने पांच पैने बाणों से मगर का शरीर वेध दिया और वह मर गया जिससे गुरु द्रोणाचार्य छूट गए। बाकी राजकुमार इस दृश्य को देख हक्का-बक्का रह गए। इससे प्रसन्न हो कर गुरु द्रोणाचार्य बोले, बेटा अर्जुन ! मैं तुम्हें ब्रह्मशिर नाम के दिव्य अस्त्र का प्रयोग और संहार की विधि बताता हूं। यह अचूक है इसलिए इसे कभी साधारण मनुष्य पर न चलाना। इसमें सारे संसार को जलाने की शक्ति है। अर्जुन ने हाथ जोड़ कर वह अस्त्र स्वीकार किया तो गुरु ने आशीर्वाद दिया, अब पृथ्वी पर तुम्हारे समान कोई दूसरा धनुर्धर नहीं होगा।

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